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प्रमाणमीमांसायाः
[ पृ० १०. पं० २३
fafada कामेहि विविध प्रसलेहि धम्मेहि सवितर्क सविचारं विवेकजं पीतिसुखं पठमकानं उपसंपज विहासिं; तिक्कविचारानं वृपसमा अक्षं संपसादन चेतसा एकोदिभाव भवितक्के अविचारं समाधि पीतिसुखं दुतियकानं उपसंपण विहासि । १ मज्झिम ०] १. १. ४ । १० १०. पं० २३. 'न खलु कश्चिदहमस्मि' - तुलना- “ नहि जातु कश्चिदत्र संदिग्धे 5 वा नाहं वेति न च विपर्यस्वति नाहमेवेति" ब्रह्म० शाङ्करभा० १० २ । सुखी पृ० २२ ।
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खराटन० पृ० ४८
प्र० १० १० २४. 'बादधृत्वात्'-तुलना
" प्रभास्वरमिदं चितं तत्त्वदर्शनसात्मकम् ।
प्रकृत्यैव स्थितं यस्मान् मलास्त्रागन्तवो मताः ॥" - तवसं० १० ३४३५ |
५० १०. पं० २७. 'अथ प्रकाश' – पुनर्जन्म और मोक्ष मानने वाले सभी दार्शनिक देहादि जड़भिन्न आत्मतत्व को मानते हैं। चाहे वह किसी के मत से व्यापक हो या किसी के मत से अध्यापक, कोई उसे एक माने या कोई अनेक किसी का मन्तव्य क्षणिकत्वविषयक हो या किसी का नित्यस्वविषयक पर सभी को पुनर्जन्म का कारण अज्ञान आदि कुछ न कुछ मानना ही पड़ता है । wara ऐसे सभी दार्शनिकों के सामने ये प्रश्न समान हैं-
जन्म के कारणभूत तव का श्रात्मा के साथ सम्बन्ध कब हुआ और वह सम् कैसा है ? | अगर वह सम्बन्ध अनादि है तो अनादि का नाश कैसे ? | एक बार नाश होने के बाद फिर वैसा सम्बन्ध होने में क्या अड़चन ? इन प्रश्नों का उत्तर सभी अधुनरावृषिरूप मात्र माननेवाले दार्शनिकों ने अपनी-अपनी जुदी जुदी परिभाषा में भी वस्तुत: एक रूप से ही दिया है ।
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सभी ने आत्मा के साथ जन्म के कारण के सम्बन्ध को अनादि ही कहा है। सभी मानते हैं कि यह बतलाना सम्भव ही नहीं कि अमुक समय में जन्म के कारण मूलत का आत्मा से सम्बन्ध हुआ । जन्म के मूलकारण को अज्ञान कहो, अविद्या कहो, कर्म कहो या और कुछ पर सभी स्वसम्मत अमूर्त आत्मतत्व के साथ सूक्ष्मतम मूर्तस्व का एक ऐसा विलक्षण सम्बन्ध मानते हैं जो अविद्या या अज्ञान के अस्तित्व तक ही रहता है और 25 फिर नहीं । अतएव सभी द्वैतवादी के मत से अमूर्त और मूर्त का पारस्परिक सम्बन्ध निर्विवाद है। जैसे अज्ञान अनादि होने पर भी नष्ट होता है वैसे वह अनादि सम्बन्ध भी ज्ञानजन्य अज्ञान का नाश होते ही नष्ट हो जाता है। पूर्णज्ञान के बाद दोष का सम्भव न होने के ntra ज्ञान आदि का उदय सम्भावित ही नहीं अतएव अमूर्त मूर्त का सामान्य सम्बन्ध मोक्ष दशा में होने पर भी वह अज्ञानजन्य न होने के कारण जन्म का निमित्त बन नहीं 30 सकता । संसारकालीन वह प्रात्मा और मूर्त द्रव्य का सम्बन्ध अज्ञानजनित है जब कि Hraatain सम्बन्ध वैसा नहीं है ।
सांख्ययोग दर्शन आत्मा-पुरुष के साथ प्रकृति का, न्याय-वैशेषिक दर्शन परमाणुओं का, ब्रह्मवादी अविद्या-माया का बौद्ध दर्शन विश-नाम के साथ रूप का, और जैन दर्शन
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