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हैमी प्रमाणमीमांसा विशयतेऽथ टिप्पणैः।
ऐतिम-तुलनास्पृग्भी राष्ट्रभाषोपजीविभिः ।। पृ० १. पं० २. 'तायिने -तुलना-"प्रणम्य शास्त्रे सुगशाय तायिने ...प्रमाणस० १. १. "नायिनामिति स्वाधिगतमार्गदेशकानाम् । यदुक्कम-'साय: स्वदृष्टमाक्ति:' ( प्रमाणवा० २, १४५.) इति दत् विद्यने येषामिति । अथवा सायः संतानार्थः ।"-बोधिचर्या ५० पृ० ७५
पृ०१.०६. 'पाणिनि-पाणिनि का सूत्रात्मक प्राध्यायी शब्दानुशासन प्रसिद्ध है। पिङ्गल का छन्दःशास्त्र प्रसिद्ध है। कशाद और अक्षपाद क्रम से दशाम्यायी वैशेषिकसूत्र और पत्राभ्यायी न्यायसूत्र के प्रणेता हैं।
४० १. ६० ६. 'वाचकमुख्य'--उमास्वाति और उनके तत्वार्थसूत्र के बारे में देखो मेरा लिखा गुजराती तस्वार्थविवेचन का परिचय ।
०१. पं० ११. अकखई-प्रकलङ्क ये प्रसिद्ध दिगम्बराचार्य हैं। इनके प्रमाबसंग्रह, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय, लघीयत्रयी प्रादि जैनन्यायविषयक भनेक प्रकरण प्रन्थ है। इनका समय ईसवीय अष्टम शताब्दी है।
पू. १.५० ११. 'धर्मकीति-धर्मकीर्ति ( ई० स० ६२५ ) बौद्ध तार्किक हैं। इनके प्रमाणवार्तिक, हेतुविन्दु, न्यायविन्दु, वादन्याय प्रादि प्रकरणमन्य हैं।
पृ० १. पं० १२. 'नास्य स्वेच्छा'---सुलना-"वचनं राजकीय वा वैदिक वापि वियते ।" श्लोकवा सू० ४. श्लो• २३५ ।
पृ० १. पं० १४. 'वर्णसम्हा-दुलना-"शास्त्र पुन: प्रमाणादिवाचकपदसमूहो ध्यूहविशिष्टः, पदं पुनर्वर्णसमूहः, पदसमूहः सूत्रम् , सूत्रसमूहः प्रकरणम्, प्रकरबसमूह प्राज्ञिकम्, माहिकसमूहोऽध्यायः, पन्चाभ्यायो गानम् ।"न्यायवा० पृ० १
पृ० १.५० १७. 'अय प्रमाण-मारतीय शाख-रचना में यह प्रथाली बहुस पहिले से चली पाती है कि सूत्ररचना में पहिला सूत्र ऐसा बनाया जाय जिससे अन्य का
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