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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 10000000000000000trrorenstressrotor+000000000000000000000000000+roin गत होने से विभक्तिबोधक प्रत्ययों का लोप होने पर भी 'ऋ' के स्थान पर 'भार' आदेश प्राप्ति का श्रभाव नहीं होता है। जैसः-मत्- वाहतम् = भत्तार-विहिंअं । मा संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप भत्तारो होता है । इसमें-मूल शब्द 'भतू' में स्थित 'र' का सूत्र संख्या २०७६ से लोप; २-६६ से 'त्' को द्वित्व 'त' की प्राप्ति, ३-४५ स अन्त्य 'ऋ' के स्थान पर 'पार' आदेश की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में श्रकारान्त पुल्लिग में संस्कृतीय प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो=ो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भत्तारो रूप सिद्ध हो जाता है। भारः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप भत्तारा होता है। इसमें 'भत्तोर अंग का प्राप्ति उपरोक्त शति अनुग, तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३.१२ से प्राप्तांग भतार' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'अ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'श्रा' की प्राप्ति और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'जस' का प्राकृत में लोप होकर भत्तारा रूप सिद्ध हो जाता है। भर्तारम् संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन का सप है। इसका प्राकृत रूप भतारं होता है। इसमें 'भत्तार' अंग की प्राप्ति उपरोक्त रीति अनुसार तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३.५ से द्वितीया-विभक्ति के एकवचन में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से 'म्' का अनुस्वार हो कर भन्सार रूप सिद्ध हो जाता है। भर्तन संस्कृत द्वितीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप भतारे होता है। इसमें 'मत्तार' अंग की प्राप्ति-उपरोक्त रीति अनुसार, तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-१४ से प्राप्नाम 'भत्तार' में स्थित अन्त्य स्वर 'प्र' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'शस' का प्राकृत में होप होकर भत्तारे रुप सिद्ध हो जाता है। .. भन संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप-मसारण होता है। इसमें 'मत्तार' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुमार, तत्पश्चात् सूत्र-संख्या-३-२४ से प्राप्तांग 'भत्तार' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय टा'='आ' के स्थान पर प्राकृत में 'ग' प्रत्यय की प्राप्ति शेकर भत्तारेण रूप सिद्ध हो आता है। भर्तृभिः संस्कृत तृतीयान्त बहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप मचाहिं होता है। इसमें 'भत्तार' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-अनुसार, तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-१५ से प्राप्तांग भत्तार' में स्थित अन्त्य स्वर 'म' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और ३-७ से सूतीया विभक्ति के बहुपएन में संस्कृतीय प्रत्यय 'मिस्' के स्थान पर प्राकत में हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भतारोह रूप सिद्ध हो आशा
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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