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________________ *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * । ७७ wrroreosorrowonorridoessetorwarsworrowarrestorernoteorometoot00000 को प्रापि; १.१७% से 'क' का लोप और ३-४१ से मूल संस्कृत शब्द 'पार्यिका में स्थित अन्त्य 'या' के स्थान पर संबोधन के एकवचन में #त के समान हो 'ए' को प्रानि होकर 'हे अजिए' रूप सिद्ध हो जाता है। है प्राधिके ! संस्कृत संबोधन के पकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप हे पउजए ! होता है हमसे सूत्र प्रख्या -२-६ मे प्रथम 'र' का जाप १८१ से 'आ' के स्थान पर 'श्र' की प्रामि; २-२४ से संयुक्त मजा ' के स्थान पर 'ज' की नापित, २-८६ से प्राप्त 'ज' को द्वित्व 'अ' को प्राप्ति; १-१७७ से 'क' ..! <af : और ३-४१ से मूल संस्कृत शब्द 'प्रार्यिका में स्थित अन्त्य 'या' के स्थान पर संबोधन के 1.कवचन में संस्कृत के समान हा 'ए' को प्राप्त होकर "हे पजिए" रूप सिद्ध हो जाता है। हे माह ! संस्कृत संबोधन करवचन का रूप है । इसका प्राकन रूप है माला ! होता है। इ.५ में सूत्र संख्या ३-४ को मंगोनन के बचन में मन प्रम 'माला' के अन्य 'श्रा' को 'यथा-स्थिति • रूप बत्त' अर्थात ज्या को त्यो स्थित' का त होकर हे माला रूप सिद्ध हो जाता है। है पिनु-स्वसः ! मकिन संबोधन कवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप हे पिउच्छा ! होता है। इस में सूत्र संख्या २-६७ से 'त् का लाप; १.६३१ में' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति;२-१४१ से 'स्वसृ' के स्थान पर काआदेश-पालि; २.८ से भा'छका द्वित्व 'छ छ' की प्राप्ति; २६० से प्राप्त पूर्व 'छके स्थान पत्र की प्राप्ति, और ३-४१ म संबोधन के पकवचन में अन्य प्रा' को स्थिति ज्यों की स्यों कायम २६ कर हे पिउच्छा कप सिद्ध हो जाता है। हे मातृ-स्वतः ! संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप हे माउछा होता है। इसको मानिन उपरांत हे पिरच्छा' में प्रयुक्त सूत्रों के अनुसार हो, होकर हे भाउच्छा" रूप सिद्ध हो जाता है। हे अम्ब ! मंकृत बोवन के एकवनन का रूप है। इसका पाकन रूप हे अम्मो ! होता है। हममें सूत्र संख्या २-७५ स 'ब' का लोप; २-८६ से लोप हुए 'ब' के पश्चात शेष रहे हुप 'म' को द्वित्व 'म' की प्राप्ति और ३.४१ की तन से संबोधन के एकवचन में प्राप्त प्राकृत रूप 'अम्मा' के अन्त्य 'श्रा' के स्थान पर 'श्री' का प्राप्ति होकर 'है अम्मी' ! रूप सिद्ध हो जाता है। भणामि मंझन सकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्रान कप भी भगामि होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२२६ मे जन्त धातु 'भण' में विकरण प्रत्यय 'अ' को प्रारत, ३-१५४ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'आ' । पानि और ३-१ : १ . वतमान काल के तृतीय पुरुष के एकवचन में "मि' प्रत्यय की प्राप्ति हा भणमि रूप सिद्ध हो जाता है। भणितान संस्कृत कृत कात्मक विशेषण द्वितीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप मणिप. होता है। इसमें सूत्र संख्या ४.१३६ से हलन्त घातु भण' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति;
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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