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________________ *प्राकृत व्याकरण 600000000otatorstressessonsertisemrootoosterrerotikotteo.roin हे पन्जिया । इत्यादि। प्रश्न:-'पाप' प्रत्यय वाले आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के ही संबोधन के एकवचन में 'ए' की प्राप्ति होती है, ऐसा उल्लेन क्यों किया गया है ? उत्तरः-जो स्त्रीलिंग शब्द 'आप' प्रत्यय से रहित होते हुए भो आकारान्त हैं; उनमें संबोधन के एकवचन में अन्य रूप से 'ए' की प्राप्ति नहीं हात्तो है; इसलिये 'आप' प्रत्ययान्त श्राकारान्त स्त्रोलिंग शब्दों के सम्बन्ध में 'सबोधन के एकवचन मे उपरोक्त विघान सुनिश्चित करना पड़ा है। जैसे:- हे पितृ-स्वसः ! हे पिउछा ! होता है; न कि 'ह पिउच्छे' हे मातृ-स्वसः !-ह माउच्छा! होता है; न कि हे माउच्छे; इत्यादि । - 'बहुलं' सूत्र के अधिकार से किती किसी प्राकारान्त प्राकृत स्त्रीलिंग शब्द के संबोधन के एकवचन में अन्त्य 'श्री' के स्थान पर 'ओ' की प्राप्ति होती हुई भी पाई जाती है । जैसे:--हे अम्ब भणितान भणामि = हे अम्मो ! भणामि भणिए ! अर्थात हे माता ! मैं पड़े हुए को पढ़ता हूँ । यहां पर संस्कृत आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द 'अम्बा' के प्राकृत रूप 'अम्मा' के संबोधन के एकवचन में अन्त्य 'या' फं स्थान पर 'भो' की प्राप्ति हो गई है; यो अन्य किसी किसी श्राकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्द के संबन्ध में भी समझ लेना चाहिये । हे माले ! संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी हे माले ! हो होता है । इसमें सूत्र-संख्या ३-४१ से मूल प्राकृत शब्द 'माला' के संबोधन के एकवचन में अन्त्य 'आ' के स्थान पर 'ए' को प्राप्ति और १-११ से संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'स' का प्राकृत में भी संस्कृत के समान हो लोप होकर 'हे माले' रूप सिद्ध हो जाता है। हे महिले । संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप भी है महिले ! ही होता है। इसमें भी सूत्र संख्या ३-४१ से और १-११ से उपरोक्न 'हे माले' के समान हो साधनिका की प्राप्ति होकर है महिले ! रूप सिद्ध हो जाता है। हे आयके ! सांकृत संयोधन एक वचन रूप है । इसका प्राकृत रूप हे अज्जिए ! होता है ! इसमें सूत्र-संख्या १८४ से 'या' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति; २-२४ से संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; २-९६ से प्राप्त 'ज' को द्विस्व 'जन' की प्राप्ति; १-१७७ से 'क' का लोप और ३-४१ से मूल संस्कृत शब्द 'मार्यिका' में स्थित अन्त्य 'या' के स्थान पर संबोधन के एक्रवचन में संस्कृत के समान ही 'ए' की प्राप्ति होकर हे अज्जिए रूप सिद्ध हो जाता है। हे आर्यके ! संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत-रूप हे अज्जिए ! होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'श्रा' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति; २-२४ से संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; २-८४ से प्राप्त 'ज' को द्वित्व जज को प्राप्ति; २-१०० से प्राप्त ज में आगम रूप 'इ'
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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