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________________ प्राकृत व्याकरण * दुहिओ-सुनी होता है। इसमें "तुहिया" रूप की सानिका परोक्त रीति-अनुसार १-१७७ से द्वितीय "त" का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय "सि" के स्थान पर "ओ" प्रत्यय की प्राप्ति; "सुअ" के अन्त्य "अ" की इसंज्ञा होकर लोप एवं तत्पश्चात् "ओ" प्रत्यय को उपस्थिति होकर दुहिआ-मुओ रूप सिद्ध हो जाता है। "गउआ" रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-५४ में की गई है । ३-३५ हस्वो मि ।। ३-३६ ।। स्त्रीलिंगस्य नाम्नी मि परे इस्वो भवति ।। माल । नई । बहु । हसमाणिं । हसमार्य पेच्छ । अमीति किम् ।। माला । सही । बहू ।। अर्थः-प्राकृत-भाषा में आकारान्त, दीघ इकारान्त और दोघं ऊकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में द्वितीया विभक्ति के एक वचन का प्रत्यय "श्रम् =म" प्राप्त होने पर दीर्घ स्वर का ह्रस्व स्वर हो जाता है। जैसे- संस्कृत-मालाम का प्राकृत में माल; नवीम-गई; वधूम- बहु इसमानोम- इसमाणिं; हसमानाम पश्य-इसमाणं पेच्छ । इत्यादि। प्रश्न:- "दीर्घ स्वरान्त स्त्रीलिंग शब्दों में द्वितीया विमति बोधक एक वचन म" प्रत्यय प्राप्त होने पर दीर्घ स्वर का स्व स्वर हो जाता है" ऐसा क्यों कहा गया है? उत्तर:-क्योंकि प्रथमा आदि अन्य विभक्ति बोधक प्रत्ययों के प्राप्त होने पर स्त्रीलिंग में दीर्घ स्वर का द्वस्व स्वर नहीं होता हैकिन्तु स्वता को प्राप्ति केवल द्वितीया विभक्ति के एकवचन के प्रत्यय की प्राप्ति होने पर ही होती है। अतएवं ऐसे विधान का उल्लेख करना पड़ा है। जैसे:- माला =माला; सखो= सही और वधूः-बहू । इन उदाहरणों में प्रथमान्त एक वचन का प्रत्यय प्राप्त हुआ है, किन्तु अन्त्य दध म्बर को हस्त्र स्वर को प्राप्ति नहीं हुई है। इससे प्रमाणित होता है कि अन्य दीर्घ स्वर के स्थान पर हस्व स्वर की प्राप्ति केवल द्वितीया विभक्ति के एक वचन के प्रत्यय की प्राप्ति होने पर ही होती है; अन्यथा नहीं। मालाम् संस्कृत द्वितीयान्त एक वचन स्त्रीलिंग रूप है । इसका प्राकृत-रूप मालं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-३६ से द्वितीय "प्रा" के स्थान पर "अ" की प्राप्ति; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में "म्" प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय को "म" का अनुस्वार होकर "मा" रूप सिद्ध हो जाता है। भट्टीम् संस्कृत द्वितीयान्त एक वचन स्त्रीलिंग रूप है । इसका प्राकृत-रूप नई होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०० से 'द' का लोप; ३-३६ से दीर्घ ईकार के स्थान पर हस्व "इकार" की प्राप्ति; ३-५ से
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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