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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * Meritorietotratortoontroversitierreronormometerminorireonoree भयर--स्वस, ननान और दुहित आदि कारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के प्राकृत रूपान्तर में अन्स्य के स्थान पर 'हा ' प्रालय नीति होती है। माप प्रत्यय 'का' में 'इ' इत्संज्ञक ने से अकारान्त शब्दों के अन्त्य 'ऋ' . का लोप होकर तत्पश्चात उसके स्थान पर 'या' प्रत्यय की प्राप्ति होने से ये शब्द प्राकृत में बाकारान्त स्त्रीलिंग वाले बन जाते हैं । जैसे:-स्वस-ससा; ननान्द नगन्दा दुहित-दुहिश्रा; दुहितृभिःन्दुहिश्राहि दुहिता-दुहिनासु और दुहित-सुतः-दुहिया-सुओ । इत्यादि । 'गउमा' शब्द 'गस्तृ' से नही बना है; किन्तु सूत्र-संख्या १-५४ में वर्णित 'गश्य' से बनता है अथवा १-१५८ में वर्णित 'गो' से बनता है। इसी प्रकार से अन्य प्राकारान्न शब्दों के संबंध में भी विचार कर लेना चाहिये, जिससे कि भ्रान्ति न हो। इसी विशेषता को प्रकट करने के लिये ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के प्रसंग में इस 'गया' शब्द को भी लिखना आवश्यक समझा गया है। स्पसा संस्कृत के स्वस शब्द के प्रथमान्त एक वचन का स्त्रीलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'ससा' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १.१७७ से 'व' का लोप; ३-३५ से अम्त्य 'ऋ' के स्थान पर 'यो' की प्राप्ति; ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय 'सि = स' की प्राप्ति और १-१५ में प्राप्त प्रत्यय स का लोप होकर ससा रूप सिद्ध हो जाता है। .. नमान्दा संस्कृत के 'ननान्द' शब्द के प्रथमान्त एक वचन का स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकत रूप "नमन्ना" होता है। इसमें सूत्र-संपा-१-२२८ से द्वितीय "न्" के स्थान पर "ण" की प्राप्ति; १-८४ से "श्रा" के स्थान पर "" की प्राप्ति; ३-३५ से अन्त्य "" के स्थान पर "आ" की प्राप्ति; और शेष माधनिका उपरोक्त "ससा" के समान ही क्रम से सूत्र-संख्या ४-४४८ से एक १-११ से होकर "नणन्दा" रूप सिद्ध हो जाता है। “वाहा " रूप की सिद्धि सूत्र संख्या 7-१२% में की गई है । दुहिभिः संस्कृत तृतीयान्त बहुवचन स्त्रीलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप दुहियाहिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से "त" कालोप; ३-३५ से लोप हुए "त" के पश्चात शेष रहे हर "कृ" के स्थान पर "आ" की प्राप्ति और ३-७ से संस्कृतीय सृतीया-विभक्ति के बहु वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय "भिः" के स्थान पर प्राकृन में "हिं" प्रत्यय की आदेश-प्राप्ति होकर दुहिआहिं रूप सिद्ध हो जाता है। पुहित संस्कृत सप्तम्यन्त बहुवचन स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रुप दहियास होन है। इसमें "दुहिया" रूप की साधनिका उपरोक्त रीति-अनुसार और ४-४४८ से सप्तमी विमक्ति के पहु वचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रस्थय "" की प्राकृत में भी प्राप्ति होकर दुहिआसु रूप सिद्ध हो जाता है। इक्षित सुतः संसास सस्पुरुप समामात्मक प्रथमान्त एक पचन का रूप है। इसका प्रासन
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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