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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित 90001000934--000890426************** [ ६५ ❖❖❖❖❖♦♦♦❖❖OD�◆◆◆◆� ताः संस्कृत स्त्रीलिंग प्रथमा द्वितीया बहुवचनान्त सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप तोश्रो ता होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तत्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यकजन "तू" का लोप; ३-३१ और ३-३३ से "स्त्रीलिंग अथंक-प्रत्यय" "डी" और "आप् = भा" की क्रम से प्राप्ति; तदनुसार "डी" और "आ" प्रत्यय प्राप्त होने पर प्राप्त प्रोकृत रूप "त" में स्थित अन्त्य '' की इत्संज्ञा होने से लोप होकर क्रम से "ती" और "ता" रूपो की प्राप्ति एवं ३ २७ से प्रथमा तथा द्वितीया विभक्ति के बहु वचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस शस्' के स्थान पर प्राकृत में 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप तीओ और ताओ सिद्ध हो जाते हैं । : "का" संस्कृत प्रथमा एक वचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप हैं। इसका प्राकृत रूप भो “का” ही होता है। इसमें सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द "किम" में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन -‘मू” का लोपः ३-३१ से 'त्रीलिंग श्रर्थक प्रत्यय" "आप्=अा" की प्राप्ति; तदनुसार पूर्व प्राप्त प्राकृत रूप "कि" में स्थित अन्त्य स्वर 'इ'' की इत्संज्ञा होकर लोप एवं शेष हलन्त "क' में प्राप्त प्रत्यय "च्या" की संधि होकर "का" रूप की प्राप्तिः ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय "सि" की प्राप्ति और १-११ से अन्त्य प्राप्त हलन्त प्रत्यय रूप व्यञ्जन "स" का लोप होकर "का" रूप सिद्ध हो जाता है । "या" संस्कृत प्रथमा एक वचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत "जा" होता है। इसमें सूत्र संख्या-१-११ से मूल संस्कृत शब्द "यत्" में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन "तू" का लोप १-२४। मे "य" के स्थान पर "अ" को प्राप्ति; ३-३१ से स्त्रीलिंग अर्थक-प्रत्यय" "आप्"= 'आ' की प्राप्ति; तदनुसार पूर्व प्राप्त प्राकृत रूप "ज" में स्थित अन्त्य स्वर "अ" की इत्संज्ञा होकर लोप एवं शेष हलन्त "ज्" में प्राप्त प्रत्यय "आ" की संधि होकर "जा' रूप की प्राप्ति; ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय “सिस् की प्राप्ति और १-११ से अन्त्य प्राप्त हलन्त प्रत्यय रूप व्यञ्जन "स्” का लोप होकर "जा" रूप सिद्ध हो जाता है "सा" स्त्रोलिंग सर्व नाम रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १०१३ में की गई है। · "काम" संस्कृत द्वितीयान्त एक वचन स्त्रीलिंग सर्व नाम रूप है। इसका प्राकृत रूप "क" होता हैं। इसमें सूत्र संख्या ३-३६ से मूल संस्कृत स्त्रीलिंग रूप "का" में स्थित "आ" के स्थान पर "" की प्राप्ति और ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में संस्कृतोय प्राप्तथ्य प्रत्यय "अम्” के स्थान पर "मू" की प्राप्ति एवं १-२३ से प्राप्त "म्" का अनुस्वार होकर "कं" रूप सिद्ध हो जाता है। "याम्" संस्कृतद्वितीयान्त एक वचन स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप "जं" होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-३६ से मूल संस्कृत स्त्रीलिंग रूप "या" में स्थित "आ" के स्थान पर "" की प्ररभिः १. २४५ से प्राप्त "य" के स्थान पर "ज" की प्राप्ति और शेष साथनिका उपरोक 'क' के समान ही होकर "जं" रूप सिद्ध हो जाता है ।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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