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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित # 98904000 [ ६३ 0.0 में "पण" प्रत्यय की आदेश प्राप्ति और १.२७ से प्राप्त प्रत्यय 'ण" पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप एई और एआणं सिद्ध हो जाते हैं । करिणी संस्कृत स्त्रोलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप (मां) करिणी ही होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-४४८ से यथा रूप वत् स्थिति की प्राप्ति होकर करिणी रूप सिद्ध हो जाता है। अजा संस्कृत रूप हैं | इसका प्राकृत रूप श्रया होता है। इसमें सूत्र संख्या १- १७७ से “ज” का ओप और १-१५० से लोप हुए "ज्" के पश्चात् शेष रहे हुए "आ" के स्थान पर "या" की प्राप्ति होकर अया रूप सिद्ध हो जाता है । एलका संस्कृत रूप है। इसका प्रीकृत रूप एलया होता है । इममें सूत्र संख्या १-१०७ से "क" के पश्चात् शेष रहे हुए " श्र!" के स्थान पर "या" की प्राप्ति होकर एलया रूप सिद्ध हो जाता है । गौरी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप गाये होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१५६ से " औ" के स्थान पर "ओ" की प्राप्ति होकर गोरी रूप सिद्ध हो जाता है । कुमारी संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप (भो) कुमारी हो होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-४४८ से यथा रूपवत् स्थिति की प्राप्ति होकर कुमारी रूप सिद्ध हो जाता है। किं यत्तदोस्य मामि ॥ ३-३३ ॥ 1 "सि भम् श्रम्" वर्जिते स्यादौ परे एभ्यः स्त्रियां ङी वां भवति ।। की । काओ । कीए । काए । की । कासु । एवं जीओो । जाओ । ती । ताओ । इत्यादि || अस्य मामीति किम् का । जा । सा । कं । जं । तं । कारण | जागा | ताय || , I 1 , अर्थ:- संस्कृत सर्वनाम "किम्", "यत्" और " तत्" के प्राकृत स्त्रीलिंग रूप "का", "जा" और "सा अथवा ता" में प्रथमा विभक्ति के एक वचन के प्रत्यय "सि", द्वितीया विभक्ति के एक वचन के प्रत्यय " अम्" और पट्टी विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राप्तव्य प्राकृत प्रत्ययों को छोड़ कर अन्य विभक्तियों के प्राकृत प्रत्यय प्राप्त होने पर इन आकारान्त 'का-जा-सा अथवा ता' सर्वनामों के अन्त्य '' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ई' की प्राप्ति होकर इनका रूप 'की-जी और ती' भी हो जाया करता है । इनके कमिक उदाहरण इस प्रकार हैं:- काः = कीओ अथवा काश्रो; कया की अथवा काय; कासु की अथव! कासु । या: = जीओ अथवा जाओ और ताःतीश्रो अथवा ताओ इत्यादि ॥ प्रश्नः - 'सि', 'अम्' और 'आम' प्रत्ययों की प्राप्ति होने पर इन आकारान्त सवनामों में अर्थात 'का' 'जा' और 'सा अथवा सा' में अन्त्य 'आ' के स्थान पर 'ई' की प्राप्ति नहीं होती है; ऐसा
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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