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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * Hinutritersartoorestro.monsoretootoobsoortootomorrori.in (स्त्री) में; एतासाम्-एईणं अथवा एमाणं अर्थात इन (स्त्रियों) का; इन उदाहरणों में ऐसा समझाया गया है कि जिन संस्कृत स्त्रीलिंग शब्दों में स्त्रीलिंग वाचक प्रत्यय 'या' की प्राप्ति हुई है। उन स्त्रीलिंग वाले शब्दों में प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'ई' प्रत्यय को प्राप्ति भी हुआ करती है। यों भाकान्त स्त्रोलिंग वाले अन्य शब्दों के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिये । प्रान:-प्राति बाचक भाकाराम्त स्त्रीलिंग शठदों में अन्य 'या' प्रत्यय के स्थान पर 'ई' मस्यय की प्राप्ति का निषेध क्यों किया गया है। उत्तरः-जाति वाचक आकारान्त स्त्रीलिंग में अन्त्य 'आ' को 'ई' की प्राप्ति कभी भी नहीं होती है। इसी प्रकार से 'ईकारान्त' को भी 'आकारान्त' की प्राप्ति नहीं होती है । अतएव उसकी प्राप्ति का निषेध ही प्रदर्शित करना आवश्यक होने से 'अजातः' अर्थात 'जाति वाचक स्त्रोलिंग शब्दो को छोक कर' ऐसा मूल-सूत्र में विधान करना पड़ा है । जैसे:-करिणी - फरिणी अर्थात् इयिनी । यह पदाहरण ईकारान्त स्त्रीलिंग का है। इसमें 'माकारान्त' का प्रभाव प्रदर्शित किया गया है। अजा-या अर्थात् पकरी और पल्लाका एलया अर्थान् बड़ी इलायची; इत्यादि इन उदाहरणों में प्रतीत होता है कि श्राकारान्त जाति वाचक स्त्रीलिंग शब्दों के प्राकृत-रूपान्तर में अन्त्य 'या' को '' की प्राप्ति नहीं होती है । यो ग्रह सिद्धान्त निर्धारित हुआ कि जाति वाचक स्त्रीलिंग शब्दों के अनव'मा' को 'आ' ही रहना है तथा यदि अन्त्य 'ई' हुई तो उस 'ई' को भी 'ई' हो रहती है। प्राकृत भाषा में अनेक स्त्रीलिंग शल्य ऐसे भी पाये जाते हैं, जो कि जाति वाचक नहीं है; किर भी उनमें अन्त्य 'आ' का अभाव है और अन्त्य 'ई' का सद्भाव है; ऐसे शब्दों के संबंध में वृत्ति में कहा गया है कि उन शब्दों को विभाषा वाले अन्य-भाषा वाले' जानवा; अर्थात ईकारान्त स्त्रीलिंग वाले ऐसे शब्दों को अन्य भाषा से आये हुए एवं प्राकृत भाषा में 'रूढ़ हुए' जानना। जैसे:-गौरी-गोरी और कुमारी कुमारी । ऐसे शब्द प्राकृत भाषा में रूद जैसे हो गये है, और इनके वैकल्पिक रूप 'गोरा अथवा कुमारी' जैसे नहीं बनते हैं। ऐसे नित्य ईकारान्त शब्दों में संस्कृत के समान ही स्त्रीलिंग-वायक' प्रत्यय 'ई' की प्राप्ति ही हुश्रा करती है। मीला:-संम्कन रूप है । इसके प्राकृत रूप नीली और नीला होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ३.३२ से 'स्त्रीलिंग याचक अर्थ में' अन्त्य 'या' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप 'नीली' और 'मीला' सिद्ध हो जाते हैं। ____ कालासंस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप काली और काला होते है। इनमें सूत्र संख्श :-३२ से 'स्त्रीलिंग वाचक अर्थ में' अन्त्य 'आ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप 'काली' और काला सिद्ध हो जाते हैं। हसमानाः-संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप हसमाणी और इसमाणा होते हैं। इनमें सूत्र -
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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