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________________ ५. ] *प्राकृत व्याकरसा * न अर्थ:-प्राकृत-भाषा के आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त और अकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में तृतीया-विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'टा='आ' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से चार आदेश रूप प्रत्ययों की प्राप्ति होती है जो कि इस प्रकार है:-'अत-अ'; 'श्रात्-श्रा, 'इत-ई' और 'एत-ए । इन आदेश प्राप्त प्रत्ययों के पूर्व हस्व-स्वर का वीर्घ हो जाता है। इसी प्रकार से षष्टी--विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'इस अस्' के स्थान पर और मतमी विभक्ति के एक वचन के संस्कृतीय प्रत्यय 'रि-ई' के स्थान पर भी उपरोक्त प्राकृत स्त्रीलिंग वाले शब्दों में उपरोक्त प्रकार से ही कम से चार आदेश रूप प्रत्ययों की प्राप्ति होती है। आदेश प्राप्त प्रत्यय भी वे ही हैं जो कि ऊपर इस प्रकार से लिखे गये हैं: अत्-श्र; पात-पा; इन-इ और एत-ए । इन आदेश-प्राप्त प्रत्ययों के पूर्व अन्त्य हस्व स्वर को दीर्घ-स्वर की प्राप्ति हो जाती है । पंचमी विभक्ति के एक वचन के संस्कृलीय प्रत्यय 'सि= अस' के स्थान पर भी उपरोक्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में उपरोक्त प्रकार से ही प्रत्ययों की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होती है; तदनुमार पंचमो विभक्ति के एक वचन में सूत्र-संख्या ३-६ से 'तो', 'ओ', 'उ', और 'हिन्तो' प्रत्ययों को प्राप्ति भी इन प्राकृत स्त्रीलिंग वाले शब्दों में होती है । पंचमी विभक्ति के एकवचन में वैकल्पिक रूप से आदेश प्राप्त प्रत्यय 'अ-आ-इ-ए' के पूर्व में शब्दान्त्य हुत्व स्वर को दीर्घ स्वर की प्राप्ति होती है । उपरोक्त विधान में इसनी सो विशेषता जानना कि सत्र-संख्या ३.३० से आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में 'आ' आदेश-प्राप्ति नहीं होती है। तृतीया विभक्ति के एक वचन का उदाहरणःमुग्धया कृतमन्मुद्धाश्र- मुद्धाइ-मुद्धाए कयं अर्थात मुग्धा से (संमोहित स्त्री विशेष से) किया हुआ है। षष्ठी विभक्ति के एक वचन का उदाहरण:-मुग्धायाः मुखम-मुद्धाअ-मुद्धाइ-मुदाए मुहं अर्थात मुग्धा स्त्री का मुख । सप्तमी विभक्ति के एक वचन का उदाहरणः-मुग्धायाम स्थितम्-मुध्दाअ-मुध्दाइ-मुदाए ठि अर्थात मुग्धा स्त्री में रहा हुआ है। स्वार्थ में प्राप्त होने वाले 'क' प्रत्यय का स्त्रोलिंग रूप में 'का' हो जाता है, तदनुसार वह शब्द 'प्राकारान्त-स्त्रीलिंग' बन जाता है और ऐसा होने पर उक्त प्राकारान्त स्त्रीलिंग शब्द की विभक्तयन्त रूपालि' सर्व-सामान्य आकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों के समान हो बनती है। जैसे:-मुग्धिकया अथवा मुग्धिकायाः अथवा मुग्धिकायाम् = मुध्दिाअ-मुनिश्राइ-मुश्दिपाए । तीनों विभक्तियों के एक वचन में एक रूपता होने से सभी रूप साथ साथ में ही लिख दिये हैं। दूसरा उदाहरण इस प्रकार है:-कमलिकया अथवा कमलिकाया एवं कमलिकायाम्=कमलिग्रामकमलिभाइ-कमलिश्राए अर्थात कमलिका से अथवा कमलिका का एवं कमलिका में | यों अन्य आकारान्त स्त्रीलिंग वाले शो के तृतीया विभक्ति के एक वचन में, षष्ठी विभक्ति के एक वचन में और सप्तमी विभक्ति के एक वचन में होने वाले रूपों को भी जान लेना चाहिये । इस्व इकारान्त श्रीलिंग 'बुद्धि' का उदाहरण: सृतीया विभक्ति के एक वचन में:-बुद्धया कृतम् बुद्धीअ-बुद्धीमा-बुद्धोइ-बुद्धीए फयं अर्थात बुद्धि से किया हुआहै।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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