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________________ * प्रियोदय हिन्दा व्याख्या सहित * [ ५८३ ] दन्त के अर्थ में भो ) जो चार प्रत्यय ( विशेष ) होते हैं, ये क्रम से इस प्रकार हैं: - (१) एधि (२) एपि (३) एत्रि और (४) एत्रि | जैसे:- कृत्वा करेपि करेविगु, करेविशु और करेवि= करके | ( हेत्वर्थ-कृदन्त के अर्थ में 'करने के लिये' ऐसा तार्थ उद्भूत होगा ) । वृत्ति में जो गाथा उदधृत की गई है, उसमें उक्त प्रत्ययों को क्रम से इस प्रकार से व्यक्त किया है: (1) जित्वा = जेपिजीत करके । (२) दादेपिशु दे करके । (३) लावा - लेवि ले करके अथवा ग्रहण करके । = (४) ध्यात्वा = झाएविणु = ध्यान करके चिंतन करके । पूरी गाथा का अनुवाद यों हैं: संस्कृत: - जित्वा अशेषं कषाय- बल, दशा अभयं जगतः ॥ लावा महाव्रतं शिवं लभन्ते ध्यात्वा तदम् ॥१॥ हिन्दी:- भव्य प्राणी अथवा मुमुक्षु प्राणी सर्व प्रथम सम्पूर्ण कषाय-समूह को जीत कर के, तपश्चात् विश्व प्राणियों को अभयदान देकर के एवं महावतों को ग्रहण करके अन्त में वास्तविक द्रव्य रूप तवों का ध्यान करके मोक्ष-पद को प्राप्त कर लेते हैं ।। ४-४४० ।। तुम एवमणाराहमपहिं च ॥ ४-४४१ ॥ , अपभ्रंशे तुमः प्रत्ययस्य एवं अण, अहं, अहिं इत्येते चत्वारः चकारात् एपि एपिणु, ०वि, एविणु इत्येते, एवं चाष्टावादेशा भवन्ति ॥ पडिहार || देवं दुकरु निश्चय धणु करण न त एम्बइ सुहु भुञ्जद्द, मधु पर भुञ्जयहिं न जाइ ॥ १॥ जेपि चएप्पिणु सयल घर लेविणु तवु पालेवि ॥ विषु सन्हें तित्थेसरे, को सकइ सुवणे वि ||२|| अर्थः—'क लिये' इस अर्थ में हेत्वर्थ कृदन्त का प्रयोग होता है और यह कृदन्त भो विश्व की सभी भाषाओं में पाया जाता है; तदनुमार संस्कृत भाषा में इस कृदन्त के निर्माण के लिये 'तुम' प्रत्यय का विधान किया गया है और इस प्राप्त प्रत्यय 'तुम' के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में आठ प्रत्ययों का संविधान किया गया है। जोकि आदेश प्राप्ति के रूप में पड़े जाते हैं; वे आदेश प्राप्त आठों ही प्रत्यय क्रम
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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