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________________ [ ५७४ । प्राकृत व्याकरण 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 (४) बाहु चल = बाहु-बलुजडउ = भुजा के बल को। इस पद में 'दुल्ल + युद्ध + ' - उल्ल अह+अ उल्ल उन' यों तीनों स्वार्थिक प्रत्ययों को एक साथ आगम-स्थिति स्पष्ट की गई है। अन्तिम स्वार्थिक प्रत्यय 'अ' में विभक्ति-वाचक प्रत्यय 'ज' की संयोजना होने से उसका लोप हो गया है ॥४-४३०॥ स्त्रियां तदसाइटीः ॥ ३.-१३१ ।। अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानेभ्यः प्राक्तन-सूत्र- द्वयोक्त-प्रत्ययान्तेभ्यो डी; प्रत्ययो भवति । पहिना दिट्ठी गोरडी, दिट्ठी मग्गु निमन्त । अंसूपासेहि कञ्चुला तितुव्वाणं करन्त ॥ १ ॥ एक डल्लो पञ्चहि रुद्धी ।। अर्थः-उपर उल्लिखित सूत्र-संख्या -४२६ और ४-४३० में जिन प्रत्ययों की प्राप्ति का संविधान किया गया है; उन प्रत्ययों को यदि स्त्रीलिंग वाचक संज्ञाओं में जोड़ा जाय तो ऐसी स्थिति में उन प्रत्ययों के अन्त में अपभ्रश-भाषा में 'डी-ई प्रत्यय की विशेष-प्राप्ति (स्त्रीलिंग-अवस्था में ) हुआ करती है। उपक रीति से प्राप्त प्रत्यय 'डी' में दकार' वर्ण इत्संझक है, तदनुसार उन श्रीलिंग वाचक संज्ञाओं में जुड़े हुए स्वार्थिक प्रत्ययों में अवस्थित अन्तिम चर का लोप हा जाता है और तत्पश्चात हलन्त रूप से रहे हुए जन स्वार्थिक प्रत्ययों वाले संज्ञा शब्दों में इस 'ई' प्रत्यय को संधि योजना होकर वे संज्ञा-शब्द ईकारान्त स्त्रीलिंग वाले हो जाते हैं। (१) जैसेः-गौरी = गोर +हड-- (अड, + ई = गोरही-पत्नी। (२) कुटी - कुडी + डुल्ल + ई = कुडुल्ली = झोंपड़ी । पूरी गाथा का अनुवाद यों हैं:संस्कृतः-पथिक ! दृष्टा गौरी ? दृष्टा, मार्गमवलोकयन्ती ।। ___अश्रृच्छ्वासः कञ्चुक तिमितोद्वानं (श्राद्रं शुष्क) कुर्वती ।। हिन्दी-विदेश में अवस्थित कोई विही यात्री अन्य यात्री से पूछता है कि-'अरे मुसाफिर ! क्या तुमने मेरो पत्नी को देखा था ? इस पर बह उत्तर देता है कि 'हॉ; देखी थी। वह उस मारा को टकटकी लगा कर देख रही थी, जिस ( मागे ) से कि तुम्हारे आगमन की सम्भावना थी। तुम्हारे वियोग में वह अपने अनु-जल से अपनी कंचुकी को भीगा रही थी तथा पुनः वह भोगो हुई कंचुकी धमके ऊंचेऊंचे और गरम श्वासोच्छवास से सूखता मी जातो थी। ऐसो अवस्था में मैंने तुम्हारा गोरडो-पत्नी को देखा था ॥१॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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