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________________ * प्राकृत व्याकरण - rrior.rom+000000000000000000000000000000000000000000000000000000m (१०) क्रीडा कृता अस्माभिः निश्चयं कि प्रजन्पत ॥ अनुरक्राः भक्ताः अस्मान् मा त्यज स्वामिन् ।।६।। हिन्दी:- हे नाथ ! हमने ता सिर्फ खेल किया था, इसलिये श्राप ऐसा क्यों कहते हैं ? हे स्वामिन् ! हम आप से अनुराग रखते हैं और आप के भक्त हैं; इसलिये हे दीन दयाल ! हमाग परित्याग नहीं करें । यहाँ पर क्रीडा' के स्थान पर 'घे= खेड्यं' शब्द व्यक्त किया गया है। संस्कृतः- (११) मरिद्धिः न सरोभिः, न सरोवरः, नापि उद्यानधनैः ।। देशा: रम्याः भवन्ति, मूर्ख । निवसद्भिः सुजनः ॥१०॥ हिन्दी:- अरे बेवकूफ ! न तो नदियों से, न झीलों से, न तालागे से और न सुन्दर सुन्दर वनों से अथवा बगीचों से ही देश मणीय होते हैं। वे (देश) तो केवल सज्जन पुरुषों के निवास करने से हो सुन्दर और रमणीय होते हैं । इस गाथा में 'रम्य' शब्द के स्थान पर 'रवण्ण' शब्द को प्रस्थापित किया गया है ॥१०॥ संस्कृतः-(१२) हृदय ! त्वया एतद् उक्तं मम अग्रतः शतवारम् ॥ स्फुटिष्यामि प्रियेण प्रवसता (सइ) अहं भएड । अमृतसार ॥११॥ हिन्दोः -हे हृदय ! तू निर्लज्ज है और आश्चर्य मय ढंग से तेरी बनावट हुई है। क्योंकि तूने मेरे आगे सैंकड़ों बार यह बात कहा है कि जब प्रियतम विदेश में जाने लगेंगे तब मैं अपने आपको विदोर्ण कर दूंगा अथांस फट जाऊंगा। (प्रियतम के वियोग में हृदय टुकड़े-टुकड़े के रूप में फट जायगा। ऐसो कल्पनाएं सैकड़ो वा नायिका के हृदय में उत्पन्न हुई है; परन्तु फिर भा समय पाने पर हृदय विदीर्ण नहीं हुआ है; इम प हृदय को 'भएड और अद्भुतमार विशेषणों से अलंकृत किया गया है ।। इस गाथा में 'अद्भुत' की जगह पर 'ढकार' शरद को तद्-अर्थ के स्थान दिया गया है ॥१|| (१३) संस्कृतः-हे पख ! मा पिधेहि अलीकम् = हे हेलि! म मनुहि भालु = हे सहला ! तु झूठ मत बोल = अथवा अपराध को मत ढोक । यहाँ पर 'सखी' अर्थ में 'हेमि' शब्द का प्रयोग किया गया है। (१५) संस्कृत:-एका कुटी पञ्चभिः रुद्धा, तेषां पश्चानामपि पृथक-पृथक-धुद्धिः॥ भगिनि ! तद् गृह कथय, कथं नन्दतु यत्र कुटुम्ब प्रात्मच्छन्दकम् ॥१२॥ हिन्दी:-एक छोटो मी झोपड़ी हो और जिसमें पाँच ( प्राणी ) रहते हों तथा घन पाँचों को ही बुद्धि मलग अलग ढंग से विचरती हो तो हे बहिन ! बो ता; वह घर आनन्नमय कैसे हो सकता है, जब कि सम्पूर्ण कुटुम्ब ही ( जहाँ पर ) स्वछन्द सेति से विचरण करता हो । (यह कथानक शरीर और
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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