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________________ ********* * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 40440606666666096*9*80000 अस्पृश्य मंसर्गस्य विद्वालः ॥ भयस्य द्रवकः ॥ जे छ विणु रयण निहि अप' तडि घनन्ति तहं सङ्ग्रहं विद्वालु परु फुकिज्जन्त भमन्ति ॥ ३ ॥ 4444444�GD9DD666646400 दिवेहिं विश्व खाहि, बढ़ संचि म एक्कत्रि द्रम् ॥ को वि द्रवकs सो पडइ, जेण समप्पड़ जम्मु ॥ ४ ॥ आत्मीयस्य श्रपण: ।। फीडन्ति जे हिडवं श्रवण || दृष्टे हि । एकमेकउं जड़ वि जोति हरि एड्डु बनायो !! ती विद्रे हि जहिं कवि राही । को सक संवर दिडूनया नहिं पलुट्टा ॥५॥ गाढस्य निच्चः ॥ विहवे कस्सु थिरतउं, जोव्वणि कम्सु मरड || सो लेखडउ पठाविह, जो लग्गह निच्चट्ड | ६ || असाधारणस्य सङ्कलः || कहिं ससहरु कहिं मयरहरु कहिं बरिहि कहि मेहु ॥ दूर-हिं वि सज्जगृहं होइ असलु नेहू ७ कौतुकस्य काडुः ।। कुञ्जरु अनहं तरु-वरहं कीहुए घल्लs इत्थु ॥ म पुणु एकहिं सल्लाहिं जइ पुच्छह परमत्थु ||८|| क्रीडायाः खेड्डः ।। खेडयं कय मम्हेहिं निच्छयं किं वयम्वद्द || असुरत्ताउ भत्ता अम् मा चय सामिश्र ॥६॥ [ ५५७ ] रम्यस्य रवण्णः सरिहिं न सरेहिं न सरवरेहिं नवि उज्जाण - वहिं ॥ देसरवण्या दोन्ति, बढ ! निवसन्तेहिं सु-अणेहिं ॥ १० ॥ भूतस्य ढक्करिः ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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