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________________ i वात म्याकरण mamsteronormoooooortooterroretorrenworosorrotsorrowomerometer मई बुचउ तुई धुरु धरहिं कसरहिं विगुत्ताई ॥ पई विणु धवल न चडइ भरु एम्बइ बुबउ काई ।१।। उक्तस्य बुत्तः । मई वुसउं । वमनो विचः । जं मणु विचि न माह ॥ अर्थ:--संस्कृत भाषा में पाये जाने वाले दो कूदन्त शब्दों के स्थान पर और एक संज्ञा वाचक शब्द के स्थान पर जो आदेश प्राप्ति अपभ्रश माषा में पाई जाती है, उसका संविधान इस सूत्र में किया गया है। वे इस प्रकार से है:-(१) विषण्ण-युग्न खेद पाया हुश्रा. दुखो हुा । हुा । (२) उक्त दुस-कहा हुला बोला हुमा । (३) वमन्-विक्षन्मार्ग रास्ता ॥ इन आदेश प्राप्त शब्दों के उदाहरण वृत्ति में दिये गये हैं, तदनुसार उनका अनुवाद क्रम से इस प्रकार हैं:संस्कृता-मया उक्तं, त्वं धुरं धर, गलि वृषभः (कसर) विनाटिताः ॥ त्वया विना धवल नारोहति भरः, इदानी विषण्णः किम् ॥१॥ हिन्दी:- मुझ से कहा गया था कि-'यो श्वेत बैल ! तुम ही धुरा को धारण करो। हम इन कमजोर बैठ जाने वाले बलों से हैरान हो चुके हैं। यह मार तेरे बिना नहीं उठाया जा सकता है। अब तू दुःखी अथवा डरा हुश्रा अथवा उदास क्यों है ? इस गाथा में कृदन्त शब्द 'विषण्णः' के स्थान पर अपभ्रंश-भाषा में भादेश प्राप्त 'बुन्नउ' शब्द का प्रयोग समझाया है ॥१|| (२) मया रकम् = मई वुत्तउं मेरे से कहा गया अथवा कहा हुश्रा । इस चरण में 'उक्तम्' के स्थान पर 'बुत्तई' की प्रादेश-प्राप्ति बतलाई है। (३) येन मनो वमन न माति = जं मगु विक्षिच न माइ=जिस (कारण) से मन मा में नहीं समासा है। इस गाथा चरण में 'वस्मनि' पद के स्थान पर 'विच्चि' पद की श्रादेश प्राप्ति हुई है। यों तीनों आदेश-प्रान शब्दों की स्थिति को समझ लेना चाहिये । ॥ ४-४२१ ।। शीघ्रादीनां वहिल्लादयः ॥४-४२२ ॥ अपभ्रंश शीघ्रादीनां पहिलादय आदेशा भवन्ति ।। एक्कू कइ ह बिन श्रावही अन्न बहिल उ जाहि ॥ मई मित्तडा प्रमाणिअउ पई जेहउ खलु नाहिं ॥१॥ झकटस्य पालः॥ जि सुपुरिस ति घञ्चालई, जिवं नइ ति क्लणाई ।। जिब डोजर तिवं कोडरई हिमा विरहि काई ॥२॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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