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________________ ! * प्रयोदय हिन्दी व्याख्या सहित * अर्थः- अपभ्रंश भाषा के पदों में 'क-ल-ग' आदि सभी व्यञ्जनों में अवस्थित 'एकार' स्वर के स्थान पर और 'ओकार स्वर के स्थान पर ह्रस्व 'एकार' के रूप में और ह्रस्व 'खोकार' के रूप में प्रायः उच्चारण किया जाता है । जेः सुखेन चिन्त्यते मानः सुघें चिन्तिजद मागु-सुख से सन्मान विचारा जाता है। इस उदाहरण में 'सु' पद के रूप में अवस्थित एकार' स्वर की स्थिति हस्व रूप से प्रदर्शित की गई हैं। 'ओ' का उदाहरण यों है:-- = = नस्य ग्रहं कलियुगे दुलभस्थत हउँ कलि-जुगि दुल्लह हो कलियुग में उस दुर्लभ का मैं । यहाँ पर 'दुल्लाह हो' पर में रहे हुए 'ओकार' स्वर की स्थिति ह्रस्व रूप से समझाई गई है । (२) गुरुजनाथ = गुरु जहाँ गुरूजन के लिये || ४-४१० ।। [ ५४३ ] = पदान्ते उंहु - हिं-हंकाराणाम् ॥४-४११॥ अपभ्रंशे पदान्ते वर्तमानानां उं हुं हिं हं इत्येतेषां उच्चारणश्य लाघवं प्रायो भवति ॥ अन्नु जु तुच्छउँ तहें हें || बलि किज्जउँ सुऋणस्सु || दइउ घडावर व ितहहुं ॥ तरुहुँ विकलु || खम्म - त्रिसाहिउ जहिं लहहुं । तहँ तइज्जी भङ्गि नवि ॥ B 00000001 अर्थः- अपभ्रंश भाषा के पदों के अन्त में यदि 'उ. हुँ, हिं, हं' इन चारों अक्षरों में से कोई भी अक्षर आ जाय तो इनका उच्चारण प्रायः हस्त्र रूप से होता है । उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:-- (१) अन्यद् यच्छं तस्याः धन्यायाः = धन्नु जु तुन्द्रउँ तहे धरण = उस सौभाग्यशालिनी नायिका के दूसरे भी जो (अङ्ग) छोटे हैं। इस चरण में 'तुच्छ' को 'तुच्छ' लिख कर इस '' को स्व रूप से 'अँ' ऐसा प्रदर्शित किया है। - (३) देवः घटयति बने तरूणां=दइ घडावर वणि तरुहुं बनाता है | इस गाथा भाग में 'तरुहुँ' पद में 'हुं' को स्थिति को रूप से प्रदर्शित नहीं की गई है। (५) बलिं करोमि सुजनस्य नलि किज्जउँ सुअणस्सु सज्जन पुरुष के लिये मैं बलिदान करता हूँ । इम गाथांश में किज्ज' के स्थान पर 'किज्जदें' लिख कर 'लें' को स्थिति ह्रस्व रूप से समझाई हैं । a विधाता - (ब्रह्मा) जंगल में वृक्षों पर प्राय:' इस उल्लेख के अनुसार ह्रस्व के (४) तरुभ्यः श्रपि वल्कलं तरुहुँ वि वक्तु = वृक्षों से भी छाल (रूप वस्त्र ) इन पदों में रहे हुए 'तरुहुँ' में 'हुँ' को 'हुँ' लिख कर उच्चारण की लघुता दिखलाई है। (५) खड्ग-विसाधितं यत्र लभामहे खग्ग-विमाहिउं जहिं लहहुं तलवार (के बल) से प्राप्त होने वाला (लाभ) जहाँ पर हम प्राप्त करें। गाया के इस भाग में 'लहहुं' क्रियापद में अन्त्य अक्षर 'हु' को 'हूँ' नहीं लिख कर लघु उधारण की वैकल्पिक स्थिति को सिद्ध की है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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