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________________ [ ५२२ ] * प्राकृत व्याकरण हिन्दी:- हे भँवर ! अभी कुछ दिनों तक प्रतीक्षा कर और इसो निम्न वृक्ष ( के फूलों ) पर ( आश्रित रह ) जब तक कि सघन पत्तों वाला और विस्तृत छाया वाला कदम्ब नामक वृक्ष नहीं फूलता है; (तब तक इसी निम्ब वृक्ष पर आत्रित होकर रह ) ॥ २ ॥ संस्कृतः - प्रिय ! एवमेव कुरू भल्लं, करे त्यज त्वं करवालम् ॥ येन कापालिका बराका लान्ति श्रभग्नं कपालम् || ३ || हिन्दी:- कोई नायिका विशेष अपने प्रियतम को वीरता पर मुग्ध होकर कहती है कि- 'हे प्रियतम ! तुम थाले को अपने हाथ में इस प्रकार थामकर शत्रुओं पर बार करो कि जिससे वे मृत्यु को तो प्राप्त हो जाय परन्तु उनका सिर अखंड हो रहे, जिससे बेचारे कापालिक ( खोपड़ी में घाटा मांगकर खाने वाले ) खंड खोपड़ी को प्राप्त कर सकें। तुम तलवार को छोड़ दो तलवार से वार मत करो । ।। ४-३६७ ।। वर्त्स्यति - स्वस्य सः ॥ ४-३८८ ॥ अपभ्रंशे भविष्यदर्थ - विषयस्य त्यादेः स्यस्य सो वा भवति ॥ दिया जन्ति झडपडहिं पडहिं मणोरह पछि || श्रच्छ तं माइि होसह करतु म श्रद्धि ।। १ ।। पक्षे | होहि ॥ अर्थः- प्राकृत भाषा में जैसे भविष्यत्काल के अर्थ में वर्तमानकाल वाचक प्रत्ययों के पहिले 'ह' की आगम-प्राप्ति होतो हैं; वैसे हो अपभ्रंश भाषा में भी भविष्यकाल के अर्थ में उक्त 'हि' के स्थान पर defeos रूप से वर्तमानकाल वाचक प्रत्ययों के पहिले 'स' की uae प्राप्ति होती है। जैसे:भविष्यत्ति = होस अथवा होहि = वह होगा | गाथा का अनुवाद यों है: संस्कृत: - दिवसा यान्ति वेगैः पतन्ति मनोरथाः पश्चात् ॥ यदस्ति तन्मान्यते मविष्यति ( इति ) कुर्वन् मा आस्स्व ।। १ । हिन्दोः - दिन प्रतिदिन अति वेग से प्रतोस हो रहे हैं और मन भावनाऐं पीछे पड़ती जा रही हैं अर्थात ढोलो पड़ती जा रही हैं अथवा लुम होतो जा रही है। 'जो होना होगा अथवा जो है सो हो जायगा' ऐसी मान्यता मानता हुआ आलसी होकर मत बैठ जा ॥ ४०३८८ ॥ क्रियेः कीसु ॥ ४-३८६ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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