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________________ #प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * storess.o0000000rsatorsitorsrorer.00000000000000000000000000000. ३.२६ से संम्वत्तीय प्रथमा-द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'जम्' और 'शस्' के नपुसक लिंगास्मक स्थानीय रूप 'नि' के स्थान पर प्राक्त में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पलयाई रूप सिद्ध हो 4 जाता है। चिट्ठन्ति रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या 3-20 में की गई है। ऐच्छा की सखिया - की गई है। वहींई रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३. P० में की गई है। भवन्ति संस्कृन अकर्मक कियापर का रूप है । इसका प्राकृत रूप हुन्ति होता है। इसमें सूत्रसंख्या-४-६५ से संस्कृत धातु 'भू-भव' के स्थान पर प्राकृत में 'हु' भावेश; और ३-१४२ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के बहुवचन में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप हुन्ति सिद्ध हो जाता है। भुन्त संस्कृत आक्षार्थक किया पद का रूप है। इसका प्राकृत रूप जेम होता है। इसमें सूत्रसंख्या ४-११० से संस्कृत मूल धातु 'भुज्' के स्थान पर प्राकृत में 'जेम' आदेश; ४-२३६ से प्राप्त प्राकृत पातु 'जेम' में स्थित अन्त्य हलन्त ध्यञ्जन 'म में विकरश प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३-२७५ से पाशार्थक लकार में द्वितीय पुरुष के एक वचन में प्राप्तथ्य प्राकतीय प्रत्यय 'सु' का लोप होकर जेम रूप सिद्ध हो जाता है। महूई कप की सिद्धि सूत्र-संख्या 3-50 में की गई है। मुच्च संस्कृत श्राज्ञार्थक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप मुख्छ होता है । इसमें सूत्र. संख्या ३.१७५ से आज्ञार्थक लकार में द्वितीय पुरुष के एक वचन में प्राप्तव्य प्राकृतीय प्रत्यय 'सु' का लोप होकर मुञ्च रूप सिद्ध होता है। षा अध्यय रूप को सिद्ध सूत्र-संस्था १-१७ में की गई है। फुल्लन्ति संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप फुल्सन्ति होता है। सूत्रसख्या ४-२३६ से मूल प्राकृत-धातु 'फुल्ल' में स्थित अन्त्य हलन्स ध्यान 'हल्' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३-१४२ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के बहुवचन में न्तिः प्रत्यय की प्राप्ति होकर भाकृत रूप फुल्लन्ति सिद्ध हो जाता है। पजानि संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पदयाणि होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२७७ से 'ज' का लोप; १-२०० से लोप हुए 'ज' के पश्चात शेष रहे हुए 'श्रा' के स्थान पर 'या' की प्राप्ति और ५-२६ से प्रथमा अथवा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'जस' और 'शस्' के नपुसक लिंगात्मक स्थानीय रूप नि' के स्थान पर प्राकृत में 'जि' प्रत्यय को प्राप्ति क्षेकर पक्ष्याणि रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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