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________________ [ ५०२ ] * प्रांकृत व्याकरण * एइर्जस्-शसोः ॥ ४-३६३ ॥ अपभ्रंशे एतदो जस्-शसोः परयोः एद्द इत्यादेशो भवति । एइ ति घोडा एह थलि ॥ ( ३३०-४ ) एह पेच्छ || अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'एततु ' सर्वनाम में प्रथमा विभक्ति बहुवचन वाचक प्रत्यय 'जस्' की प्राप्ति होने पर तथा द्वितीया विभक्ति बहुवचन वाचक प्रत्यय 'शस्' की संयोजना होने पर मूल शब्द 'एतत्' और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर दोनों ही विभक्तियों में 'पद्द' पदरूप की आदेश गति होती है । जैसे:—पतं ते म्याः =एइ ति घोडा- ये वे (हो) घोड़े । (२) एवा स्थली= एह धाल = यह भूमि || एतान् पचय = एह पेच्छ = इनको देखो ॥ ४-३६३ ।। दस ओइ ॥ ४-३६४ ॥ अपत्र 'शे अदसः स्थाने जस शसोः परयोः श्रोह इत्यादेशो भवति ॥ जर पुच्छह पर बडाई तो चड्डा घर भइ || विहलिश्च - जण - प्रभुद्धरगु कन्तु कुडीरह जोड़ || १ || श्रमूनि वर्तन्ते पृच्छ वा । 4444444444 संस्कृत:- यदि पृच्छण विह्वलित अर्थः-- श्रपभ्रंश भाषा में 'ऋदस्' सर्वनाम में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर तथा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में 'शस्' प्रत्यय की योजना होने पर मूल शब्द 'अदस्' और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर दोनों हो त्रिभक्तियों में 'ओई' पद रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:अमो = श्रइ = वे ( अथवा ये) और श्रमून् = ओइ उनको (अथवा इनको ) ॥ नपुंसकलिंग वाचक उदाहरण यों है: – (१) अमूनि वर्तन्ते - ओइ वन्ते वे होते हैं अथवा बरतते हैं । (२) असूनि पृच्छ = ओह पुच्छ = उनको पूछो । (३) घर ओइ = गृहाणि अमूनि = वे घर; इत्यादि ॥ गाथा का अनुवाद यों है: - महान्ति गृहाणि तद् महान्ति गृहाणि अमूनि || अनाभ्युद्धरणं कान्तं कुटीरके पश्य ॥ १ ॥ हिन्दीः यदि तुम बड़े घरों के सम्बन्ध में पूछना चाहते हो तो बड़े घर वे हैं। दुख से व्याकुल हुए पुरुषों का उद्धार करने वाले (मेरे) त्रियतम को कुटीर में (झोंपड़े में ) देखो ॥१॥४-३६५४।। इदम आयः ॥ ४-३६५ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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