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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [४६१] अर्थ:--अपभ्रंश भाषा में सभी प्रकार के स्त्रीलिंग शब्दों में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में माप्तव्य प्रत्यय जस' के स्थान पर '' और 'ओ' ऐसे को प्रत्यों की भादेश प्राप्ति होती है। इसी प्रकार में इन्ही स्त्रीलिंग शब्दों के द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में भी प्राप्तम्य प्रत्यय 'शस्' के स्थान पर उक्त '' और 'अ' ऐसे दो प्रत्ययों को आदेश-प्राप्ति जानना चाहिये । यो प्रथमा द्वितीया के बहुवचन में उक्त प्रत्ययों की संयोजना करने के पहिले प्रत्येक स्त्रीलिंग शब्द के अन्त्य स्वर को विकल्प से हस्व के स्थान पर दीपस्वी कर दी गोलन सास्त्र की प्राप्ति भी कम से हो जाती है। ऐसा होने से दोनों विभक्तियों के बहुवचन में प्रत्येक शब्द के लिये चार चार रूपों को प्राप्ति हो जाया करती है। यह सूत्र सूत्र संख्या ४-३४१ के प्रति अपवाद रूप सूत्र है। दोनों ही विभक्तियों के बहुवचनों में समान रूप सं प्रत्ययों का समाव होने से 'यथा संख्यम्' अर्थात् 'कम से' ऐसा कहने को पावश्यकतो नहीं रही है। दोनों विमाकयों के क्रम से उदाहरण इस प्रकार है (१) अंगुल्यः जर्जरिता नखेन = अंगुलिउ जमरियाउ नहेण = (गणना करने के कारण से नख से अंगुलियाँ जर्जस्ति हो गई हैं। पीड़ित हो गई हैं। यहाँ पर प्रथमा-विभक्ति के बहुवचन के अर्थ में '' प्रत्यय' की प्राप्ति हुई है। पूरी गाथा सूत्र संख्या ४-३३३ में देखना चाहिये । (1) सुन्दर-सर्वागीः विलासिनी: प्रेक्षमाणामाम् = सुन्दर-सवंगाउ पिलालिपीओ (विलासिणीओ) पेच्छन्ताण सभी अंगों से सुन्दर मानन्द मम्न स्त्रियों को देखते हुए (पुरुषों) के लिये (अथवा पुरुषों के हृदय में) । यहाँ पर मी द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में कम से 'ज' और 'भो' प्रस्थयों को प्रदर्शित किया गया है ।। ४-३४८ ।। टए॥४-३४६ ॥ अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानान्नाम्नः परस्याष्टायाः स्थाने ए इत्यादेशो भवति ॥ निप्र-मुह-करहिं वि मुद्ध कर अन्धारइ पडिपेक्षइ ।। ससि-मंडल-चंदिमए पुणु काई न दरे देक्खा ॥१॥ जहि मरगय-कन्तिए संवलियं ।। भर्थ:-अपभ्रंश भाषा में सभी प्रकार के बीलिंग शब्दों में पूतीया विभक्ति के एकवचन में प्राप्तध्य प्रत्यारा' के स्थान पर '' ऐसे एक ही प्रत्यय की आदेश-प्राप्ति होती है। पादेश प्राप्त प्रत्यय 'ए' की संयोजना करने के पहिले शब्द के अन्त में रहे हुए हस्व स्वर को दीर्घ स्वर की और दीर्घ स्वर को हस्व स्वर की प्राप्ति विकल्प से हो जाती हैं। यों सीलिंग शब्दों में वतीचा विभक्ति के एकवचन में कम से तथा वैकल्पिक रूप से दो दो रूपों की प्राप्ति होती है। जैसे-पत्रिफया - चंदिमए =चांदनी से | यहाँ पर 'ए' प्रत्यय के पूर्व मंदिमा' से 'दिम' हो गया है । (२) कात्या = कन्तिए-कांति से आमासे ।। वृत्ति में दी गई गापामों का अनुपाद कम से इस प्रकार हैं:
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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