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________________ [ ४६० } * प्राकृत व्याकरण000000000000000000minat0000 0 .000000000000000000000000000000000 ___ अर्थः-अपभ्रंश भाषा में संबोधन के बहुवचन में संज्ञाओं में प्राप्तम्य प्रत्यय 'जस' के स्थान पर (विकल्प से ) हो' प्रत्यय रूप को प्रादेश-प्राप्ति होती हैं। इस सूत्र को सूत्र-संख्या ४-३४४ के स्थान पर छापवाद रुप समझना चाहिये । उदाहरण इस प्रकार हैं:-हे तरूणाः! हे तरूण्यः (च) झातं मया, आत्मनः घातं मा कुरुत तरूणहो ! तरूणहो । मुणिउ मई, करह, म अप्पहो घाउ = अरे नवयुवकों और अरे नवयुवतियाँ ! मैंने ( सत्य ) ज्ञान प्राप्त किया हैं। इसलिये तुम अपने पापको विषय-अग्नि में हाल कर के ) आत्म-घात मत करो। यहाँ पर 'तरुणहो और तहणिहो' पद संबोधन-बहुवचन के रूप में प्राप्त होकर 'हो' प्रत्ययान्त हैं ॥ ४-३४६ ।। भिस्सुपोर्हि ॥ ४-३४७ ।। अपभ्रंशे भिस्मुपोः स्याने हि इत्यादेशो भवति ॥ गुणहिं न संपइ कित्ति पर । (४-३३५ ) ॥ सुप् ।। भाईरहि जि मारह मन्गेहि तिहिं वि पयट्टइ ।। अर्थः-अपभ्रंश भाषा में तृतीया के बहुवचन में भाग्य प्रत्यय "मिस' के स्थान पर 'हि' प्रत्यय को आदेश प्राप्ति होती हैं। इसी प्रकार से सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में भी प्राप्तव्य प्रत्यय 'सुप्' के स्थान पर भी अपभ्रंश भाषा में 'हि' प्रत्यय की श्रादेश प्राप्ति होती है। दोनों के क्रम से उदाहरण इस प्रकार हैं: (१) गुणः म संपव कार्तिः परं = गुणर्हि न संपइ कित्ति पर - गुणों से संपत्ति नहीं प्राप्त को जा सकती है; परन्तु ( गुणों से ) कीर्ति प्राप्त की जा सकती हैं।। पूरी गाथा सूत्र-संख्या ४-३३५ में देखो) (२) भागीरथी यथा भारते त्रिषु मार्गेषु प्रवर्तते = भाईराह जि भारद मग्गेहिं तिहिं वि पयट्टइ - जैसे गंगा नदी भारतवर्ष में तान मार्गों में बहता है । यहां पर 'मग्गेहिं और तिहिं' पदों में सप्तमी-बहुवचन-बोधक-अर्थ में 'सुप्' प्रत्यय के स्थान पर 'हिं' प्रत्यय को प्रादेश-प्राप्ति देस्त्री जाती है। ॥४-३४७ ॥ स्त्रियां जस-शसोरुदोत् ॥ ४-३३८ ॥ अपभ्रंशे खियां वर्तमानाभाम्नः परस्य जसः शसश्च प्रत्येकमुदोतावादेशी भवतः । लोपापवादो ॥ जसः । अंगुलिउ जज्जरियाउ नहेण ॥ (४-३३३) शसः । सुन्दर-सव्वङ्गाउ विलालिणीमो पेच्छन्ताण ॥१॥ वचन-मेदान्न यथा-संख्यम् ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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