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________________ *प्राकृत व्याकरण * torror trootsveerrestreatreeswaroorrotterrorrentremorrowstram विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्त प्रत्यय 'टा' के स्थानीय रूप 'या' के स्थान पर प्राकृत में 'णा' प्रत्यय की आदेश--प्राप्ति होकर दहिणा रूप सिद्ध हो जाता है। मधुना संस्कृत तृतीयान्त एक वचन रूप है । इसका प्राकृत रूप महुणा होता है। इसमें सूत्रसंख्या-१-१८७ से 'धू' के स्थान पर 'ह की प्राप्ति और ३.२४ से तृतीया विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्त प्रत्यय 'टा' के स्थानीय रूप 'ना' के स्थान पर प्राकृत में णा' प्रत्यय की प्राप्ति होकर महणा रूप सिद्धो जाता है। गिरी रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या -१९ में की गई है। तरू रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१९ में की गई है। दहिं रूप की सिध्दि सूत्र-संख्या ३-१९ में की गई है। महुँ रूप की सिध्दि सूत्र--सख्या ३-१९ में की गई है। बुद्धया संस्कृत तृतीयान्त एक वचन रूप है । इसका प्राकृत रूप बुध्दी होता है। इसमें सूत्र' संख्या ३-२६ से तृतीया विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्त प्रत्यय 'दा' के स्थानीय रूपमा स्थान पर प्राइत में अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीघ स्वर 'ई' की प्राप्ति करते हुए 'अ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बुद्धी रूप सिध्द हो जाता है। धेन्या संस्कृत तृतीयान्त एक वचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप घेणूत्र होता है । इसमें सूत्रसंख्या १-२२६ से मूल रूप 'धेनु' में स्थित 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति और ३-२६ से तृतीया विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्त प्रत्यय 'टा' के स्थानीय रूप 'आ' के स्थान पर प्राकृत में अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति करते हुए 'अ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर शेणूम रूप सिग्द से आता है। कार्य रूप की सिध्दि सूत्र-संख्या १-१२5 में की गई है। कमळेम सस्कृत तृतीयान्त एक बंधन रूप है । इसको प्राकृत रूप करलेण होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-६ से तृतीया विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्त प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१४ से प्राप्त प्रत्यय 'ज' के पूर्व में स्थित शब्दान्त्य 'अ' के स्थान पर 'ए' को प्राप्ति होकर कमलेण रूप सिध्द हो जाता है ॥३-२४॥ बलीबे स्वरान्म सेः ॥३-२५ ॥ क्लीचे वतमानात् स्वरान्तानाम्नः से स्थाने म् भवति ।। यणं । पेम्म । दहि । महु ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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