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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 6000000000000rroreroorkeratorsrrenorrorecomorrowroorresors.retooto अभाव प्रदर्शित करके यह सिद्ध किया गया है कि 'या' प्रत्यय केलव तृतीया विभक्ति के एक वचन में ही प्राप्त होता है न कि किसी अन्य विभक्ति में। प्रश्नः-पुल्लिग और नपुसक लिंग' ऐसे शलहों का उल्लेख क्यों किया गया है ? उत्तरः- इकारान्त और उकारान्त शब्द स्त्रीलिंग वाचक भी होते हैं परन्तु उन इकारान्त और इकारान्त स्त्रीलिंग वाचक शब्दों में तृतीया विभक्ति के एक वचन में'टा'प्रत्यय की प्राप्ति होने पर भी इस प्राप्तव्य 'टा' प्रत्यय के स्थान पर'णा'की श्रादेश-प्राप्ति नहीं होती है; अत: 'टा' के स्थान परणा'प्रादेशप्राप्ति केवल पुल्लिग और नपुसकलिंग वाले शब्दों में हा होती है। यह बतलाने के लिये हो पुल्लिंग और नपुसक लिंग जैसे शब्दों का सूत्र को वृत्ति के प्रारम्भ में प्रयोग किया गया है। जैसे:-बुद्धया-बुद्धी बुद्धि से धेन्वा कृतम् धेणू कयं अर्थात् गाय से किया हुआ है। इन उदाहरणों में तृतीया विभक्ति के एक वचन का 'टा' प्रत्यय प्राप्त हुआ है; परन्तु 'टा' के स्थान पर 'णा' नहीं होकर सूत्र-संख्या ३-२६ से 'अ' प्रत्यय की प्राप्ति हुई है; यो अन्यत्र मी जान लेना चाहिये । प्रश्नः-'इकारान्त और उकारान्त' ऐसा उल्लेख क्यों किया गया है ? उत्तर-इसमें ऐसा कारण है कि प्राकृत में प्रकारान्त तथा आकारान्त आदि शन भी होते हैं परन्तु उनमें भी 'टा' के स्थान पर 'णा' श्रावेश-प्राप्ति नहीं होती है; अतः इकारान्त और उकारान्त जैसे शब्दों का प्रयोग करना पड़ा है। जैसे:-कमलेन-कमलेण अर्थात् कमल से। . गिरिणा रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या-73 में की गई है। ग्रामण्या संस्कृत तृतीयान्त एक वचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप गामणिणा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से 'र'को लोप; ३-४३ से मूल शब्द 'ग्रामणी' में स्थित दांर्घ स्वर 'ई' के स्थान पर प्राकृत में हस्व स्वर 'इ' की प्राप्ति और ३.५५ से तृतीया विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्त प्रत्यय 'टा' के स्थानीय रूप 'या' के स्थान पर प्राकृत में 'णा' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गामणिणा रूप ' सिद्ध हो जाता है। खलप्या संस्कृत सृतीयान्न एक वचन रूप है। इसका प्राकृत-रूप खलपुणा होता है । इसमें सूत्र-संख्या ३-४३ से मुल शब्द 'स्खलपू' में स्थित दीर्घ स्वर 'ॐ' के स्थान पर प्राकत में हम्ब स्वर '' की प्राप्ति और ३-२४ से तृतीया विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्त प्रत्यय 'टा' के स्थानीय रूप 'श्रा' के स्थान पर प्राकृत में 'णा' प्रत्यय की प्राप्ति होकर खलपुणा रूप सिद्ध हो जाता है। तरुणा रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-7 में की गई है। दध्ना संस्तन तृतीयान्त एक पचन रूप है। इसका प्राकृत-रूप दहिणा होता है । इसमें सूत्रसंख्या १-१८० से मूल-शब्द 'दघि' में स्थित 'ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२४ से तृतीया
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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