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________________ [ ४५ ] * प्राकृत व्याकरण .000000000000000000000000+torrotrovercornvertorrotoroorno.00000000 (१५) सूत्र संख्या ४-२७४ में यह सम माया गया है कि-अकागन्त धातुओं में वर्तमानकाज के अन्य पुरुष के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ और ए' के स्थान पर दे की भी प्राईम होनी है। जैसेःअरे ! किम् एष महान्तः कलकल. श्रूयते = अले किं एसी महन्द कलयले शुणीअंतबर ! यह बढ़ा कोलाहल क्यों सुनाई दे रहा है ? इस उदाहरण में 'शुणोदे' में है' का प्रयोग हुअा है। (१६) सूत्र-सख्या ४.२७५ में यह सूचना की गई है कि-शोर सनी भाषः म भविष्यत काल-अर्थक प्रत्ययों में हि, स्सा और हा' के स्थान पर रिस' रूप की प्राप्ति होती है । जै:--तदा कुन नु गतः रूधिर प्रियः भविष्यात = ता कहि न गढ़े लुहिलाप्पए भावम्मिाद = वम समय में कहा गया हुआ हो त का प्रमी होगा। (१७) सूत्र संख्या ४-५७६ में यह बतलाया गया है कि-अकारान्त शब्दों में पंचमी विभक्ति के एकवचन में 'श्रादो और श्राटु' एस दो प्रत्ययों की अादेश प्राप्ति होती है। जैसे:-अहमपि भागुगयणात भवाम प्राप्नोमि-अपि भागुलायणादो मई पावेनि = में भी भागुरायण से मुद्रा को प्राप्त करना हूं। यहां पर 'भागुलायण दो' का रूप दिखलाया गया है। (१८) सूत्र संख्या ४-२७७ में कहा गया है कि-शौरसेनी भाषा में 'इदानीम्' के स्थान पर दाणिम' ऐसे रूप की आदेश प्राप्ति होती है । जैसे:-श्रणत इदानीम् अहम् शकायतार-तीर्थ-निवासी धीवरःशुणध नाणं हगे शक्कावयाल तिस्त-णिवाशी धीवले = मुना. इस । मय म मै शकावतार नामक तार्थ का रहने वाला धीवर है ॥ (१६) सूत्र-संख्या ४-२७८ में समझाया गया है कि- शोर सनी भाषा में 'तस्मात्' शब्द के स्थान पर 'ता' शब्द रूप का आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- सस्मात यावत् प्रविंशामि = ता या पषिशामि = 38 कारण से जब तक में प्रवेश करता हूँ। (10) सूत्र-मंख्या ४-२७६ में लिखा गया है कि-शोर मनी भाषा में पदान्त्य 'म्' के धागे यदि 'कार' अथवा 'एकार' हो तो इन 'इकार' अश्वका 'उकार' के पूर्व में विकल्प से हलन्त 'ण' की भागम प्राप्ति होती है। जैसे:-(१) युक्तम् इमम = युक्त णि = यह युक्त है-यह ठोक है। (२) सदृशं इमं = शारिश णिमें यह समान है। इन उदाहरणों में 'इम' में पूर्व में 'ण कार' की अागम प्राप्ति हुई है। (१) सूत्र संख्या ४-२८२ में सूचित किया गया है कि-शोर मनी भाषा में 'एच' अर्थक अभ्यय के स्थान पर 'प्येव अव्यय रूप का प्रयोग किया जाना चाहिय । जैसे:-मम एव-मम व्येव = मेश ही है। 7) मूत्र-मख्या ४.८१ में यह संविधान किया गया है कि शौरसेनी भाषा में 'दामी' को पुकार ने पर संबोधन के रूप में हजे' शब्द रूप अन्यत्र का प्रयोग किया जाता है। जैसे:-- अरे ! चनुलिक =कने चालक - अरे ! आ चतुरिका (दामी)
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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