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________________ । I * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित # [ ४५७ ] 000009 (७) सूत्र संख्या ४०:६६ में यह कथन किया गया है कि शौरसेनो में 'ये' के स्थान पर द्वित्व यप की विकल्प से प्राप्ति होती है। जैसे:-आर्य ! एषः खु कुमार: मलय केतुः = अध्य! एड़ी खु कुमाले मलय केंद्र = हे श्रायें ! ये निश्चय ही कुमार मलय केतु हैं । (८) सूत्र संख्या ४-२६७ में यह विधान प्रविष्ट किया गया हूँ क शौरसेनो में विकल्प से 'थ' के स्थान पर 'घ' की प्राप्ति होती है। जैसे:- अरे कुम्भिरा कथय असे कुम्भिला कधेहि अरे कुम्मिरा ! कहो || (९) सूत्र संख्या - २६८ में यह उल्लेख किया गया है कि:- 'इ' अव्यय के 'हकार' के स्थान पर और वर्तमान कालीन मध्यम पुरुष के बहुवचन के प्रत्यय 'ह' के स्थान पर शौरसेनी में विकल्प से होता है । जैसे:-- अपसरत आर्याः ! अपसरत = अधि अय्या आंशलध = हूं आर्यो ! श्राप हटे श्राप हटे ।। (१०) सूत्र संख्या ४२६६ में विधान किया गया है कि शौरसेनी भाषा में भू = मत्र' धातु के 'कार' को विकल्प से हकार की प्राप्ति होती हैं। अथवा प्राप्त हकार को पुनः विकल्प से मकार की प्राप्ति हजारी है। जैसे- (शिन्ह होता है । (११) सूत्र संख्या ४-: ७० में कहा गया है कि-शौरसेनो में 'पूर्व' शब्द के स्थान पर 'पुर' ऐसी आदेश-प्राप्ति विकल्प मे होती है जैसे:- अपूर्वः = अपुरष अनोखा, विलक्षण || = = (१२) सूत्र संख्या ४-२७१ में सूचित किया गया है कि शौरसेनी भाषा में सम्बन्ध-कल सूच प्रत्यय 'कत्वा' के स्थान पर 'इय और दूण' ऐसे दो प्रत्ययों को आदेश प्राप्ति विकल्प से होती है। जैमःकिन खलु शोभनः ब्राहमणो से इति कृत्वा राज्ञा परिग्रहो दसः किं शोभणे मणे शिि कलियaser विष्णे-क्या निश्चय ही तुम श्रेष्ठ ब्राह्मण हो, ऐसा मान करके राजा द्वारा सम्मानित किये गये हो यहां पर 'कलिय' पद में 'क्वा' के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की आदेश प्राप्त हुई है। 1 (१३) सूत्र-संख्या-४-२७२ में यह उल्लेख है कि 'कृ' धातु और 'गम' धातु में 'क्वा' प्रत्यय के स्थान पर डिस' पूर्वक (अन्स्य अक्षर के लोप पूर्वक) 'अध' प्रत्यय को आदेश प्राप्ति विकल्प से होनो हूँ। जैसे:-- कृत्वा कडुभ=करके || गत्वा गजुअ = जाकर कं ॥ यों 'अ' की प्राप्ति समझ लेना चाहिये । (१४) सूत्र संख्या ४:७२ में कहा गया है कि वर्तमानकाल के अन्य पुरुष के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ' और 'ए' के स्था पर 'दि' प्रत्यय रूप की प्राप्ति होती है। जैसे:- अमात्य राक्षसं प्रेक्षितुम् इतः एष आगच्छति = अमरा-ल दहाय्य आगश्रदि गक्षम नामक मंत्री को देखने के लिये इधर ही वह आता है अथवा आ रहा है। यहां पर 'आगश्चदि में 'इ; ए' के स्थान पर 'दि' का प्रयोग हुआ है ।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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