SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 457
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [४४७ ] अथ मागधी-भाषा व्याकरण प्रारम्भ अत एत् सौ पुसि मागध्याम् ॥ ४-२८७ ॥ मागध्यां भाषायां सौ परे अकारस्य एकारो भवति पुसि पुल्लिगे ।। एप मेषः । एसे मेशे । एशे पुलिशे || करोमि भदन्त । करेमि भन्ते ।। अत इति किम् । णिहो । कली। गिली ॥ पुसीति किम् । जलं ।। यदपि "पोराण मद्ध-मागह-भासा-निययं हबह सुत्त" इत्यादिनार्षस्य अर्धमागध भापा नियतत्वमाम्नायि वृद्ध स्तदपि प्रायोस्यय विधान वक्ष्यमाण लक्षणस्य ।। कयरे आगच्छइ ।। से तारिसे दुक्खसह जिइन्दिए । इत्यादि । . अर्थ:-मागधी भाषा में अकारान्त पुलिंग में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में "सु" प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य "अकार" को "एकार" की प्राप्ति हो जाती है । जैसे:-एष मेषः = एशे मेशे यह भेड़ । पुरुषः - एशे पुलिशे = यह आदमो। करोमि भदन्त = करोम भन्ते-हे पूज्य ! मैं करता हूँ। इन उदाहरणों में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में और संशोधन के एक वचन में "एकार" की स्थिति स्पष्टतः प्रदर्शित की गई है। प्रश्न:--'धकारान्त' में ही प्रथमा विभक्त के एक वचन में 'एकार' की स्थिति क्यों कही गई है ? उत्तर:-जो शब्द पुल्लिग होते हुए भी मकारान्त नहीं है, उनमें प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्राव्य प्रत्यय 'सु' के स्थान पर 'एकार को प्राप्ति नहीं पाई जाती है इसलिये अकारान्त के लिये हो ऐसा विधान किया गया है। उदाहरण क्रम में इस प्रकार हैं:-(१) निधिः = णिही-खजाना (1) करिः - कली = हाथी (३) गिरि: गिली-पहाड इत्यादि । इन उदाहरणों से झात होता है कि ये इकारान्त है इसलिये इनमें प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय "सु" के स्थान पर "एकार" की प्राप्ति नहीं हुई है। यो अन्यत्र भी जान लेना चाहिये । प्रश्नः-पुल्लिंग में हो "एकार' की प्राप्ति होती है। ऐसा भी क्यों कहा गया है ? उत्तरः-जो शब्द अकारान्त होते हुए भी यदि पुल्लिग नहीं है तो उन शब्दों में भी प्रथमा विभक्ति के एक वचन में मानव्य प्रत्यय "सु" के स्थान पर "ए कार" की प्राप्ति नहीं होगी। जैसे:जलम्-जल यानी । इस उदाहरण में "जल'' शब्द अकारान्त होते हुए भी पुल्लिग नहीं होकर नपुंसक लिंग पाला है. इसलिये इस शब्द में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में "जले" नहीं होकर "जलं" रूप ही बना है। यों अन्य अकारान्त नपुसक लिंग वाले शब्दों के संबंध में भी यह बात ध्यान में रखी जानी पाहिये।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy