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________________ [४२८ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * mariantertoo.motoriorrorrorosterorisertiorenewsorrormorever अप्फुरणादयः शब्दा आक्रमि प्रभृतीनां धातुनाम् स्थाने तेन सह वा निपात्यन्ते ।। अप्फुरणो । आक्रान्तः ॥ उक्कोस । उत्कृष्टम् ॥ फुडं । स्पणम् ।। बोलीणो। अतिक्रांतः । वोसट्टी: विकसितः ॥ निराहो । निपातितः ॥ लुग्गो। रुम्मणः ॥ रिहको । नष्टः ।। पम्हुड्डो । प्रमृष्टः प्रमुपितो वा ।। विद्वत्तं । अर्जितम् ॥ छित्तं । स्पृष्टम् ॥ निमिअं : स्थापितम् । चक्खियं । प्रास्वादितम् ॥ लुझं। लूनम् ।। जई । पक्तम् ।। झोसिग्नं । क्षिप्तम ॥ निच्छुढे । उबृत्तम् ।। पल्हत्थं पलोट्टं च ॥ पर्यस्तम् । हीसमर्थ ।। हेषितम् । इत्यादि ।। अर्थः-संस्कृत-भाषा में धातुओं के अन्त में 'तकार'='क्त' प्रत्यय के जोड़ने में कर्माण भूत कुन्त के रूप बनजाते हैं और तत्पश्चात ये बने बनाये शब्द विशेषण' जैसी स्थिति को प्रात कर लेते है तथा मझा शब्नों के समान हो इनके रूप भी विभिन्न विमतियों में नथा वचनों में चलाये जा सकते हैं। जैसे-गम् संगत = गया हपा । मन् ने मत = माना हुआ । इत्यादि। प्राकृत-भाषा में भी इसी तरह से कर्मणि-भून-कृदन्त के अर्थ में संस्कृत भाषा के समान ही धातुओं में 'त-त' के स्थान पर 'अ' प्रत्यय की संयोजन को जाती है। जैसे:-गत: ओगया हुआ। तामो-माना हुआ। अनेक धातुषों में 'त = श्र' प्रत्यय जोड़ने के पूर्व इन धातु बों के अन्त्यस्वर 'अकार' को 'कार' की प्रापि हो जाती है, जैसे:--पाठतम्-पाह = पढ़ा हुश्रा। श्रुतम् -सुणिना हुआ। या रूप बन जाने पर इनके अन्य रूपभी विभिन्न विभ क्तयों में बनाये जा सकते हैं। उपरोक्त सविधान का प्रयोग किये बिना भी प्राकृत-भाषा में अनेक शब्द ऐसे हैं जो कि बिना प्रत्ययों के ही कमीण-भूत-दन्त के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। ऐसे शब्दों की यह स्थिति वैकल्पिक होती है और ये 'निपात से सब हुए' माने जाते हैं विभिन्न विभक्तियों में तथा दानों वचनों में इन शब्दों के रूप चलाये जा सकते हैं। ऐसे शब्द 'विशेषण की कोटि' को प्राम कर लेते हैं, इस लिय ये तीनों लिंगों में प्रयुक्त किये जा सकते हैं। एक प्रकार से ये शब्द 'श्राष' जैसे ही हैं। _ 'पात्रम्' श्रादि संस्कृत धातुओं के स्थान पर -तअ' प्रत्यय सहित प्राकृत में विकल्प से जिन धातुओं में श्रादेश-स्थिति को निपात रूप से ग्रहण की है, उन धातुओं में से कुछ एक धातु ग्रां के रूप (बने बनाये रूप में Ready made रूप में नीचे दिये जा रहे हैं। यही इस सूत्र का तात्पर्य है। (१)माकान्त: अप्फुरणाचकाया हुमा । (२) उत्कृष्टम् = उनोसं उत्कृष्ट, अधिक से अधिक । (३) स्पष्टम्-फुकपष्ट अथवा व्यक्त, साफ। (४) श्रोतकान्तः = वोलोणी- व्यतीत हुया, बीता हुभा। (५) विकसित:- दोसट्टो = विकास पाया हुश्रा, खिला हुश्रा । (६) निपातितः= निसुट्टो गिराया हुआ। (७) रुग्णः = लुग्गो भरन, भांगा हुश्रा अथवा रोगी, वोमार । (८) नदः = लिहका = नाश पाया हुआ। (1) प्रमृष्टः- पम्हट्ठो = चोरी किया हुआ । {१०) प्रमुषिसः = पम्हट्टो = चुराया हुआ। (११) अर्जितम्
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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