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________________ [ ४२७ की आदेश प्राप्ति होती है; और ऐसी आदेश प्राप्ति होने पर कर्मणि-भावे प्रयोग-वाचक प्राकृत प्रत्यय "ई अथवा इज्ज" का लीप हो जाता है । उदाहरण यों है: --- (१) स्तियते = सिप्पद=प्रोति की जाती है. स्नेह किया जाता है । (२) सिच्यते = सिप्पड़-सींचा जाता है, छिटका जाता है। यों "स्निह" और "सच्" दोनों धातुओं के स्थान पर "सिप्प" इम एक हो धातु रूप की आदेश प्राप्ति होती है परन्तु दोनों प्रसंगानुसार समझ लिये जाते हैं | ४-२५५ ॥ ग्रहे ॥४-२५६ ॥ हे कर्म भावे घे इत्यादेशी वा भवति क्यस्य च लुक् || घेप्पह | गिहिज्ज || ? ********* * प्राकृत व्याकरण * अर्थ:-"प्रहण कर ग, लेना" अर्थक संस्कृ धातु " मह" का प्राकृत रूपान्तर "गिरह" होता है; परन्तु कमणि-मात्र-प्रयोग में इस "प्रह" धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में "घेप" ऐसे धातु रूप की आदेश प्राप्ति विकल्प से होती है; तथा ऐसी वैकल्पिक आदेश प्राप्ति होने पर कर्मणि भावे - अर्थ-बोधक प्रत्यय "ईथ अथवा इज्ज" का प्राकृत रूपान्तर में लोप हो जाता है; यों जहाँ पर "ई अथवा इज्ज" प्रत्यय का लोप हो जायगा वहाँ पर "ग्रह" के स्थान पर "घेप" का प्रयोग होगा और जहाँ पर "ईश्व अथवा इज्ज" प्रत्ययों का लोप नहीं होगा यहाँ पर "प्रह" के स्थान पर "गिरह" घातु रूप का उपयोग किया जायगा । जैसे:- गृहयते - वेप्पर अथवा गिव्हिज्जर (अथवा गिण्डीअइ) महण किया जाता है, लिया जाता है ॥। ४-२५६ ।। 31 स्पृशे शिवप्पः || ४-२५७ ॥ स्पृशतेः कर्म-भावे छिपादेशो वा भवति कयलुक् च ॥ छिप्पर । विविज्जर || अर्थ :- "छूना, स्पर्श करना" अर्थक संस्कृत धातु "स्पश" का प्राकृत रूपान्तर "चिव" होता है; परन्तु कर्मणि भावे -प्रयोग में इस "खुश्" धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में "विप्प" ऐसे धातु रूप की ध्यादेश प्राप्ति विकल्प से होती है तथा ऐसी वैकल्पिक श्रादेश प्राप्ति होने पर कर्मणि भावे अर्थ बोधक प्रत्यय "ईश्व अथवा इज्ज" का प्राकृत रूपान्तर में लोप हो जाता है; यो जहाँ पर "ई अथवा इज्ज प्रत्ययों का लोप हो जायगा वहाँ पर 'स्पृश' के स्थान पर 'द्विप्प' धातु रूप का प्रयोग होगा और जहां पर 'ई अथवा इजज़' प्रत्ययों का लोप नहीं होगा वहां पर 'खुश' के स्थान पर 'शिव' धातु-रूप का उपयोग किया जायगा । दोनों प्रकार के दृष्टान्त यों हैः-स्पृश्यते-छिप्पर अथवा छिषिज्जइ (अथवा ) छिर्षा = आ जाता है, स्पर्श किया जाता है | ४-२५७ ॥ क्र्तेना फुराणादयः ॥ ४-२५८ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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