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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [ ३३ *********** 1660 'उस' के स्थान पर 'णो' प्रदेश प्राप्ति होती है; ऐसे इस विधान में 'पुल्लिंग' का और नपुंसकलिंगत्व का कथन क्यों किया गया है ! 4000 उत्तर:-इकारान्त और उकारान्त शब्दों में 'स्त्रीलिंग' वाले शब्दों का भी अन्तर्भाव होता है; किन्तु ऐसे 'स्त्रीलिंग' वाले इकारान्त और उकारान्त शब्दों में 'मि' और 'इस' के स्थान पर 'गो' की प्राप्ति नहीं होती है; अतएव इन स्त्रीलिंग वाले शब्दों के लिये 'इसि' और 'इस्' के स्थान पर 'गो' आदेश प्राप्त प्रत्यय को प्रभाव प्रदर्शित करने के लिये पुल्लिंग और नपुंसक लिंग' जैसे शब्दों का उल्लेख करना पड़ा है। 'स्त्र लिंग' से संबंधित उदाहरण इस प्रकार है:- पंचमी विभक्ति के एक वचन का दृष्टान्तः बुद्धवाः अथवा घेन्याः लब्धम् बुद्धी अथवा घेणू लद्धं अर्थात बुद्धि से अथवा गाय से प्राप्त हुआ है | षष्ठी विभक्त के एक वचन का दृष्टान्तः -- बुद्धयाः घथवा धेन्वाः समृद्धि: - बुद्धीअ अथवा घेणूअ समिद्धी अर्थात बुद्धि की अथवा गाय की समृद्धि है। इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में 'इति' और '' के स्थान 'गो' आवेश प्राप्त प्रत्यय का प्रभाव होता है । प्रश्नः— 'इकारान्त' और 'उकारान्त' ऐसे शब्दों का उल्लेख क्यों किया गया है ? उत्तरः--इकारान्त आर उकारान्त के अतिरिक्क श्राकारान्त तथा अकारान्त शब्द भी होते हैं; इनमें भी 'ङसि' और 'ङस्' प्रत्ययों की प्राप्ति होती है; परन्तु जैसे इकारान्त और उकारान्त में 'सि' और 'उस' के स्थान पर 'णो' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होती है; बैसी 'णो आदेश प्राप्ति 'आकारान्त और 'अकारान्त' में नहीं होती है; ऐसा भेद प्रदर्शित करने के लिये ही वृत्ति में 'इकारान्त' और 'डकारान्त' जैसे शब्दों का उल्लेख करना पड़ा है। जैसे:- कमलायाः = कमला अर्थात् लक्ष्मी से और कमलस्य = कमलक्स अर्थात् कमल का। इन उदाहरणों में 'इसि' और 'इस्' प्रत्ययों की प्राप्ति हुई है परन्तु ऐसा होने पर भी प्राप्त प्रत्ययों 'इति' और 'ङस्' के स्थान पर 'खो' आदेश-प्राप्ति नहीं हुई हैं। इस प्रकार इकारान्त और उकारान्त शब्दों में हो 'उसि' एवं ' के स्थान पर 'खो' आदेश प्राप्ति होती है; ऐसा विधान सिद्ध हुआ । गिरेः संस्कृत एक वचनात्मक पंचम्यन्त रूप है । इसका प्राकृत रूप गिरिलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-२३ से मूल शब्द 'गिरि' में संस्कृतीम पंचमी विभक्ति के एक वचन में प्राप्त प्रत्यय 'सि' के स्थानीय रूप 'अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'गो' आदेश प्राप्ति होकर गिरिणो रूप सिद्ध हो जाता है । तरीः संस्कृत एक वचनान्त पंचम्यन्त रूप है । इसका प्राकृत रूप तरुण होता है। इसमें सूत्रसंख्या ३- २३ से मूल शब्द 'तरु' में संस्कृतीय पंचमी विभक्ति के एक वचन में प्राप्त प्रत्यय ङमि' के स्थानीय रूप 'असू' के स्थान पर प्राकृत में 'णो' आदेश-प्राप्ति होकर तरूणी रूप सिद्ध हो जाता है ।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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