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________________ * प्राकृत व्याकरया* [ ३४६ ] .0000orrorrrrrrrrrrrrowroorkerosisterdress00000000000000000000000004 म्लेर्वा-पवायौ ॥४-१८ ॥ म्लायते; पब्वाय इत्यादेशौ वा भवतः ।। बाइ । पयायइ । मिलाइ । अर्थ:--मुरमाना अथवा कुम्हलाना अर्थ वाली संस्कृत धातु 'म्लैं' के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'दा और पवाय इन दो धातुओं की आदेश प्रान होनी है वैकल्पिक यन्न होने मे पन्नांतर में मिला' रूप की भी प्राति होगी। इसका है- समागी कार, मकसद और मिलाई = वह कुम्हलाता है, वह मुरझाता है ।। ४-६८ || निर्मो निम्माण-निम्मी ॥४-१६ ॥ निर् पूर्वस्य मिमीतरतावादेशों भवतः ।। निम्माणइ । निम्मवइ ।। अर्थ:-निर उपमर्ग सहित 'मा' धातु के स्थान पर प्राकृत में निम्माण और निम्मब' ऐसे दा धातु-रूपों की प्रादेश प्रानि होता है । जैसे:- निर्मिमाते निम्माणइ और निम्मषइ = वह निर्माण करता है ।। ४-१६ ।। क्षेणिज्झरो वा ॥ ४-२०॥ क्षयतेणिज्झर इत्यादेशो वा भवति ॥ णिज्झरह । पने भिजन ॥ अर्थः-नष्ट होना अर्थ वाली संस्कृत धातु 'क्षि' के स्थान पर प्राकृन में 'णिज्झर' धातु-रूप की पादेश प्राप्ति होती है । पक्षान्तर में 'झिज' रूप की भी प्राप्ति होगी। जैसे-क्षयति अथवा क्षयते = णिज्रइ अथवा झिज्जा- वह क्षीण होता है, वह नष्ट होता है ।। ४-२० ।। छदे णे णुम-नूम-सन्नुम-ढक्कौम्बाल-बालाः ॥४-२१ ॥ छदेपर्यन्तस्य एते पडादेशा वा भवन्ति ।। णुमइ । नूमह । णत्वे घुमड | सत्रुम । डकइ । ओम्बालइ । पब्बालइ । छायइ ।। अर्थ:-प्रेरणार्थक प्रत्यय 'णिच्' पूर्वक 'छ'- 'बादि धातु के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से छह धातु-रूपों को आदेश प्राप्ति होती है, कम से इस प्रकार हैं:-१) णुम, (२) नूम, (३) सन्नुम, (४) दस, (५) ओम्बाल और (६) पवाल। सूत्र-संख्या १-२२६ से श्रादेश-प्राप्त रूप नूम में स्थित भादि नकार को एकार की प्राप्ति होने पर सातवां आदेश प्राप्त रूप 'णूम' भी देखा जाता है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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