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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * अर्थ में नाकृत में प्राप्तब्य प्रत्यय 'हि' की प्राति और ३-१४० से भविष्यत् काल के अर्थ में प्राकृत में क्रम से प्राप्तांग होजह तथा होजाहि' में द्वितीय पुरुष के एकवचन के अर्थ में 'सि' प्रत्यय को प्राप्त होकर 'होज्जाहास तथा होजाहीस' सिद्ध हो जाते हैं। तृतीय और चतुर्थ रूप हो तथा होजजा' में सूत्र-संख्या ३-१७८ से तथा ३-१५७ से ( उपरोक्त रोति से) प्रातांग हो' में भविष्यत् काल-वाचक रूप से प्रामण्य द्वितीय पुरुष के एकवचन के अर्थ वाले प्रत्ययों के स्थान पर कम से 'जज तथा ज्जा' प्रत्ययों की वैकल्पिक रूप से प्राश-प्रामि होकर होऊन तथा होज्जा' रूप सिङ्गो जाने हैं। बम रूप होहिम' की सिद्धि सूत्र-संख्या -१56 में की गई है। भषिष्यामि संस्कृन के भविष्यत् काल के तृतीय पुरुष के एकवचन का अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत-रूपांतर कम से होउहिमि, होजाहिमि, होजसामि, हाजहामि, होउतरत होउन और होजा होते हैं। इनमें से प्रथम पाँच रूपों में उपरोक्त रीति से प्राप्तांग 'हो' में सूत्र-संख्या ३-१७८ से उज तथा जा' प्रत्ययों की (विकरण रूप से क्रम से संक्रपिन-मामि; तत्पश्चात् क्रम से प्रातांग होजज तथा होज्जा' में सूत्र-संख्या ३-१६६ से तथा ३-१६७ से भविष्यत-काल-वाचक अर्थ में प्राकृत में प्रासय प्रत्यय "हि, सा, हा' की क्रम से प्रथम द्वितीय रूपों में तथा तृतीयं चतुर्ध रूपों में प्राप्ति; यो क्रम से भविष्यत्कालवाचक अर्थ में कम से प्राप्तांग प्रथम द्वितीय तृतीय और चतुर्थ रूप होजहि होजाहि, होजसा और होज्जहा' में सूत्र-संख्या ३-१४१ से तृतीय-पुरुष के एकवचन के 'अर्थ में 'मि' प्राथय की प्रासे होकर 'होज्जहिमि, होजाहीम, होजस्ता और होज्जहामि रुप सिद्ध ही जाते हैं। पञ्चम रूप होजस्स' में 'हो' अङ्ग की प्राप्ति उपरोक्त रीति से होकर सूत्र संख्या ३.९६६ से भविष्यत-काल के अर्थ में प्रातांग होज' में तृतीय पुरुष के एकवचन के अर्थ में प्रातव्य प्रत्यय 'मि' के स्थान पर 'स' प्रत्यय की श्रादेश-प्राप्ति होकर 'होज्जरस रूप सिद्ध हो जाता है। अटे और सातवें कम हो सधा होजा' में 'हो' अन की उपरोक्त रीति से प्राप्ति होकर तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१७८ से सथा ३.१७७ से भविष्बत-काल के अर्थ में प्राप्तव्य सभी प्रकार के प्राकृत प्रत्ययों के स्थान पर केवल ज तथा उमा' प्रत्ययों की हो काम संप्रालि होकर होज्ज तथा होजना रूप सिद्ध हो जाते है। भवतु तथा भवन संस्कृत के कम से माशार्थक तथा विधि लिक प्रथम पुरुष के छक्यचन के अकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इनके प्राकृत रूप समान रूप से यहाँ पर पाँच दिये गये हैं। होमड, होजा, होज्ज, क्षेज्जा तथा कोद । इनमें धातु-मंग यी ' को प्राप्ति उपरोक्त रीति अनुसार; तत्पश्चात प्रथम दोकों में सूत्र संखमा ३-१४ से 'कन तथा जा' प्रत्ययों की (विकरण रूप से)
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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