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________________ प्राकृत व्याकरण * [ २६५ है। इस प्रकार इस सूत्र में यह बतलाया गया है कि यदि प्राकृत-भाषा में किसी भी स्वरात धातु का किसी भी भूत कालिक लकार में, किसी भी पुरुष का और किसी भी वचन का फैसा ही रूप बनाना हो वो प्राकृत भाषा की उप्त स्वगन्त धातु के मूल रूप के साथ में 'सो अथवा हो अथवा हो' प्रत्यय की संयोजना कर देने से भूतकाल के अर्थ में इष्ट पुरुष वाचक और इष्ट वचन बोधक रूप का निर्माण हो जायगा ! इस विवेचना से यह प्रमाणित होता है कि संत-भाषा म भूतकाल-बोधक लकारों में प्राप्तव्य प्रत्ययों के स्थान पर सभी पुरुष-बोधक-श्रों में तथा सभी वचनों के अर्थों में प्राकृत्त में सी, ही और होत्र' प्रत्ययों की श्रादेश-प्राप्ति होती है। सूत्र-संख्या ३-१६३ में 'ध्यञ्जनादोश्रः' के उल्लेख से यही समझना चाहिये कि सूत्र संख्या ३-१६२ में वर्णित भूतकाल-योतक प्रत्यय 'सी, हो. होम' केवल स्वरान्त पातुओं के लिये ही है । इस विषयक स्पष्टीकरण इस प्रकार है: भूतकाल बोधक प्रत्यय फेवल स्वरान्त धातुओं प्रथम पुरुष-सी. ही, ही, के लिये तथा एकवचन द्वितीय , -, " " एवं बहुवचन के लिये सुनीय ,-" , " सूत्र की वृत्ति में दो उदाहरण इस प्रकार दिये गये हैं: भाकृत रुपान्तर फासी अथवा काही अथवा हिन्दी अर्थ मैं अथवा हमने तूने अथवा तुमने असने अथवा पन्होंने किंवा अथवा किया था अथवा कर चुके थे। संस्कृत रूप १ अकार्षीत (आदि नत्र रूप नीनों पुरुषों में और तीनों वचनों में लुङ लकार में २ अकरोत (आदि मय रूप ला लकार में) ३ चकार (आदि नव रूप लिट लकार में) १ अस्थात् (श्रादि नव रूप-तीनों पुरुषों में और तीनों वचनों में लुरु लकार में) २ अतिष्ठत् (आदि नव रूप ला लकार में) ३ तस्थौ (श्रादि नव रूप लिट लकार में) ठासी अथवा ठाही अथवा जादी मैं अथवा इम; तू अथवा तुम; वह अथवा वे ठहरे; था सहरे थे अथवा ठहर चुके थे।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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