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________________ [ २८८ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित # ***$$$❖❖❖÷600000000000 'कार' के करता है कि केवल 'अकारान्त-धातुओं' के अशा प्रत्यय 'ज्जाज्ज' का सद्भाव होने पर 'एकार' की प्राप्ति होती है; अन्य स्वरान्त धातुओं में स्थित अन्त्य स्त्ररों के स्थान पर 'एकार' की प्राप्ति का विधान नहीं है । $964606456646004 हसन्ति, हसिष्यन्ति, हसन्तु, और इसेयुः संस्कृत के क्रम से वर्तमानकाल के, भविष्यत्काल के, लोट् लकार के और लिङ्ग लकार के प्रथम पुरुष के बहुवचन के अकर्मक किशापड़ के रूप हैं । इन सभी रूपों के स्थान पर प्राकृत में समान रूप से हसेज्जा और हसेज्ज रूप होते हैं। इन दोनों प्राकृतरूपों में सूत्र संख्या ३-९५६ से मूल प्राकृत धातु 'इस' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और ३-१७७ से प्राकृत में प्राप्तांग 'इसे' में वर्तमालकाल के भविष्यकाल के लोट् लकार के और लिङ् लकार के अर्थ में प्राप्तव्य संस्कृतिीय प्रत्ययां के स्थान पर प्राकृत में प्राप्तव्य सभी प्रकार के प्रत्ययों के स्थान पर 'ज्जा और ज्ज' प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से दोनों 'प्राकृत क्रियापद के रूप इसेजा और दसेन सिद्ध हो जाते हैं । craft, भविष्यन्ति भवन्तु और भवेयुः संस्कृत के क्रम से वर्तमानकाल के, मविध्यत काल के, लोट् लकार के और लिङ, लकार के प्रथम पुरुष के बहुवचन के अकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इन सभी रूपों के स्थान पर प्राकृत में समान रूप से होना और होउज रूप होते हैं। इन दोनों प्राकृत रूपों में सूत्र संख्या ४०६० से संस्कृत धातु 'भू - भव्' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' रूप को आदेश प्राप्ति और ३-१७७ से प्राकृत में प्राप्तांग 'हो' में वर्तमानकाल के भविष्यत्र काल के लोट् लकार के और लिह लकार के अर्थ में प्राप्तव्य संस्कृतीय प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत में प्राप्तव्य सभी प्रकार के प्रत्ययों के स्थान पर 'बजा और उज' प्रत्ययों को आदेश प्राप्ति होकर क्रम से दोनों प्राकृत क्रियापद के रूप होना और होज सिद्ध हो जाते हैं । ३-१५६।। ई - इज्जौ क्यस्य ॥३ - १६०॥ - चिजि प्रभृतीनां भाव - कर्म - विधिवदयामः । येषां तु न च ते संस्कृतातिदेशात् प्राप्तस्य वयस्य स्थाने ई इज इत्येतावादेशौ भवतः ॥ हसीड़ | हसिज्ज | इसी अन्तो । इसिज्जन्तो । हसीमायो । हसिज्जमाणो । पढी | पत्रिज्जइ होईअइ । होइज्जइ । बहुलाधिकारात् कचित् क्योप विकल्पेन भवति । मए नवेज्ज । मए नविज्जेज्ज । तेरा लहेज्ज | तेरा लहिज्जेज्ज | वे अच्छेज्ज । तेसा अच्छिज्जेज्ज | तेख अच्छी बड़ ॥ I अर्थ:- संस्कृत के समान ही प्राकृत भाषा में भी क्रिया तीन प्रकार की होती है जो कि इस प्रकार है: -- (१) कर्तृवाचक, (२) कर्मवाचक और (३) भाववाचक | इसी पाद में पहले कलु बाय प्रयोग के सम्बन्ध में बतलाया जा चुका है अब कर्मणि प्रयोग और भावे प्रयोग का स्वरूप बतलाया す
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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