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________________ [२८६ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 00000000000000000000000000000000000*woverno0000000000000000 द्वितीय रूप हसन को सिद्धि सूत्र-संख्या २-१९८ में की गई है। हसामः संस्कृत का अकर्मक रूप है । इसके भकत रूप हसेम, हलिम, इसेमु और हसिमु होते है। इनमें से प्रथम और तृतीय रूपों में सूत्र-संख्या ३-१५८ से मूल प्राकल अकारान्त धातु 'हस' में धित अन्त्य 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' को प्राप्ति और ३-१४४ से कम से प्राप्तांग 'हसे और हस' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचनार्थ में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'मस्' के स्थान पर प्राक्त में म से 'म और मु' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर प्रथम और तृतीय रूप 'हसेम और हसेम' सिद्ध हो जाते हैं। हासम सथा हसिमु में मूत्र संख्या ३-१५५ से मूल-प्राकृत अकारान्त धातु 'हस' में स्थित अन्त्य "अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'इ' की प्राप्ति और ३-१४४ से क्रम से प्राप्तांग 'हसि और हप्ति' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचनार्थ में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'मस्' के स्थान पर प्राकत में कम से 'म और मु' प्रत्ययों की गप्ति होकर द्वितीय और चतुर्थ रूप हासिम और हसिमु' सिद्ध हो जाते हैं। हसतु संस्कृत का प्रामार्थक रूप है । इसके प्राकृन रूप हसेज और हसउ होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ३-१५८ से मूल प्राकृत अकारान्त थातु 'हस में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति और ३-१७३ से क्रम से प्राप्तांग 'हमे और हस' में आज्ञार्थक ल कागथं में तृतीय पुरुष के एकवचन में संस्कृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'तु' के स्थान पर प्राकृत में 'दु-उ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कम से दोनों प्राकृत रूप 'हसंउ और हस' सिद्ध हो जाते हैं। श्रृणोतु संस्कृत का श्राज्ञार्थक रूप है । अथवा शृणुयाम संस्कृत का विधिलिङ का। (अर्थात श्रामा निमन्त्रण-श्रामन्त्रण सत्कार पूर्वक निवेदन-विचार और प्रार्थना श्रर्थक) रूप है । इसके प्राकृत रूप सुणे उ और सुण उ तथा सुणा होते हैं। इनमें मूत्र संख्या-२-४ से संस्कृत में प्राप्त धातु-अंग 'श्रनु' में स्थित 'थ' के 'र' व्यञ्जन का लो१, १.२६० से लोप हुए 'र' व्यञ्जन के पश्चात् शेष रहे हुए शु' में स्थित तालव्य 'श' के स्थान पर प्राकृत में इस्य 'स' की प्राप्ति; २२८ से 'न' के स्थान पर 'ए' को प्राप्ति; ४-२३८ से प्राप्त 'गु' में स्थित अन्त्य ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; ३.१५८ से प्राप्तांग 'सुण में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर क्रम से एवं वैकल्पिक रूप से 'ए' और 'मा' की प्राप्ति; और १-१७३ से कम से प्राप्तांग 'सुण, सुण और सुणा' में लोट् लकार और विधिलिड के अर्थ में है प्राकन में 'दु-उ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सुणे उ. मुणउ और मुणाउ प्राकृत रूप सिद्ध हो जाते हैं। हसत - हसन संस्कृत का कृदन्त रूप है। इसके प्राकृत रूप हसेन्तो और हसन्तो होते हैं । इनमें सूत्र संख्या ३.१५८ से मूल प्राकृत प्रकारान्त धातु 'हस' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे वर्तमान कृवन्त अथक प्रत्यय का सद्भाव होने के कारण से वैकल्पिक रूप से 'ए' की शप्तिः ३-१०१ से कम से
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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