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________________ [ २८४ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * rrorrowtrekkoreso0000000torstarrestrettesrearrrrrron0000000000000 प्रामि; ३-१४६ से संबन्ध-भूत-कृदन्त-अर्थक प्राप्तव्य संस्कृतीय प्रत्यय 'स्त्वा = स्वा' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में 'तूण' प्रत्यय की प्राप्ति और १.१७७ से प्राकृत में प्राकृत प्रत्यय 'तूण' में स्थित त' का लोप होकर शेष रूप से प्राः 'ऊण' प्रत्यय की प्रानि होकर कम सं दोनों प्राकृत रूप हसऊण और हसिऊण सिद्ध हो जाते हैं। हसितम संस्कृत का हेत्वर्थक कृदन्त का रूप है । इपके प्राकृत रूप हसे और हमि होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१५७ से मूल प्राकृत धातु 'हम' 4 स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर कम से ए और इ' की प्राति; ५-४५८ से इत्यर्थ कृदन्त के अर्थ में संस्कृत में प्रामस्य प्रत्यय 'तुम' के समान ही प्राकृत में भो 'तुम्' प्रत्यय को प्राप्ति; १.९७७ से प्राप्त. प्रत्यय तुम्' में स्थित 'त' व्यञ्जन का लोप और १-२३ से 'न' व्यञ्जन के लोप होने के पश्चात शेष रहे हुए प्रत्यय रूप 'म्' में स्थित अन्त्य हलन्त म्' के स्थान पर पूर्व वर्ण 'उ' पर अनुम्बार को प्राप्ति होकर कम से दोनों प्राकृत रूप हसेई और हसिउ सिद्ध हो जाते हैं। हसितव्यम् संस्कृत का विधि कृदन्त का रूप है। इसके प्राकृत रूप से अन्द और हमिच होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ३-१५७ से मूल प्राकृन-धातु 'हम' म स्थित अनस्य स्वर 'अ' के स्थान पर म से 'ए' और 'इ' को प्राप्ति; ४-४४८ से विधि कृदन्त के अर्थ में संस्कृत में प्राप्तम्य प्रत्यय 'तव्य' के समान ही प्राकृत में भी 'तव्य' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१७७ से प्राप्त प्रत्यय 'तव्य' में स्थित 'न' व्यन्जन का लोप; ३.२५ से प्राप्तांग 'इसेअब और हसिलव' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'म' प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर पूर्व वणं 'ब' पर अनुस्वार को प्राप्ति होकर क्रम से दोनों प्राकृत रूप से अव्य और हसिअर्व मिद्ध हो जाते हैं। हसिध्यति संस्कृत का अकर्मक रूप है । इसके प्राकृत रुप हसहिद और हसिहिद होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१५७ से मूल प्राकृत-धातु 'हस' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर श्रागे भविष्यातकाल बोधक प्रत्यय का सदुभाव होने के कारण से कम ' और ' की प्राप्ति; ३-१६६ से क्रम से प्राप्ती हसे और हसि' में भविष्यत काल-अर्थक रूप के निर्माण के लिए 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति और ३.१३६ से भविष्यत-काल-अर्थक रूप से निर्मित एवं प्राप्तांग 'हसहि और हसिह' में प्रथम पुरुष के एकवचन में '' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भविष्यत्काल का प्राकृत रूप हसहिद और हसिहा सिद्ध हो जाते हैं । 'काऊण' कृदन्त रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-F७ में की गई है । ३.१५७ ।। वर्तमाना-पञ्चमी-शतृषु वा ॥ ३-१५८॥ वर्तमाना पञ्चभी शत्पु परत अकारस्य स्थाने एकारी वा भवति ॥ वर्तमाना । इसई
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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