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________________ * प्राकृत व्याकरण * [ २८३ ] + ++++ ++++ ++++++: 7 :39**********--- P rototo क्त्वा । इसेऊण । हसिऊण । तुम् । हसेउ । हसि ॥ तव्य । इसेमव्य । इसिमन्वं ।। भविष्यन् । हसेहिह । हसिहिइ ।। अत इत्येव । काऊण ॥ ___अर्थ:-प्राकृत भाषा की अकारान्त धातुओं में सम्बन्धक भूतकदन्त द्योतक संस्कृनीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'क्वा-त्या के प्राकृत में स्थानीय प्रत्यय 'ऊण, उपाण' आदि होने पर अथवा हेत्वर्थक-कदन्त घोतक संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'तुम' के प्राकन में स्थानीय प्रत्यय उ' श्रादि होने पर अथवा विधि-कदन्त द्योतक संस्कृताय प्राप्तव्य प्रत्यय 'तम्य' के प्राकृत में स्थानीय प्रत्यय 'अब्द' होने पर अथवा भविष्यतकाल-बोधक पुरुष-वाचक प्रत्यय होने पर इन अकारान्त-धातुओं के अन्त में स्थित 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होती है एवं मूल-सूत्र में 'चकार' का सद्भाव होने के कारण से कभी-कभी उन अकारान्त धातुओं के अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति भी हो जाया करती है । सम्बन्धक मत कृदन्त - घोतक संस्कृतीय प्राप्तव्य पत्यय 'क्रवा' से सम्बन्धित उदाहरण इस प्रकार है: हसिाहसेऊण अथवा इमिण-हँस करके; हेत्वर्थक-कृदन्त-द्योतक संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'तुम्' से सम्बन्धित उदा. हरण इस प्रकार है: हसिनुम् = इसे अथवा हसि-हँसने के लिये; विधिकृदन्त द्योतक संस्कृताय प्रामध्य प्रत्यय 'तम्य' से सम्बन्धित उदाहरण इस प्रकार है:- हसितव्यम् = हसे प्रन्च अथवा हमिअम्बं: हंसना चाहिये अथवा हँसी के योग्य है भविष्यकाल बोधक प्रत्ययों से सम्बन्धित बदाहरण इस प्रकार है:-हमिष्यत्ति = हसहिद अथवा हमिहिद-वह हंसेगा; इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि उपरोक्त फुरन्तों में अथवा भविष्यत-काल के प्रयोग में अकारान्त धातुओं के अन्त्यस्थ खा 'श्र' के स्थान पर या तो 'ए' को प्रालि होगी अथवा 'इ' की प्रानि होगी। प्रश्न:-अकारान्त धातुओं के सम्बन्ध में ही ऐमा विधान क्यों बनाया गया है ? अन्य स्वरान्त धातुओं के सम्बन्ध में ऐसे विधान की पानि क्यों नहीं होती है ? उत्तर-चाक अन्य स्वर अ' के स्थान पर ही 'ए' अथवा 'इ' को श्रादेश-प्राति पाई जाती है और अन्य किसी भी अन्य स्वर के स्थान पर 'ए' अथवा 'इ' को प्रादेश प्राप्ति नहीं पाई जाती है। इस लिये केवल अन्त्य 'अ' के लिये ही एना विधान निश्चित किया गया है । जैसे-वा = काग-करके; इस उदाहरण में सम्बन्धक-भून-कृदन्त योतक प्रत्यय 'ऊण' का मार होने पर मा धातु प्राकारान्त होने से इस धातु के अन्त्यस्थ सर 'श्रा' के स्थान पर किसी भी प्रकार के अन्य स्वर की प्रादेश-प्राप्ति नहीं हुई है। इस प्रकार यह सिद्धान्त निश्चित हुश्रा कि केवल अकारान्त-धातुओं के अन्त्यस्य 'अ' के स्थान पर ही 'करवा', तुम-तव्य और भविष्यत् कालवाचक-प्रध्धयों' के परे रहने पर 'ए' अथवा को मादश-प्राप्ति होती है; अन्य अन्त्या स्वरों के स्थान पर उपरोक्त प्रत्ययों के परे रहने पर भी किसी भी अन्य स्वर को आदेश-प्राप्ति नहीं होती है। हसित्या संस्कृत भून-कुदन्त का रूप है । इसके प्राकृत-हप हसेऊण और हतिण होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१५७ से मूल प्राकृत धातु 'हस' में स्थित अन्त्य स्वर 'प्र' के स्थान पर क्रम से 'ए' और 'इ'
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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