________________
* प्राकृत व्याकरण *
[२७१ ] 46900 4$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ $$$$$$$$$$$$$1$$$$$$$$$$
णेरदेल्लोपेषु कृतेषु आदेरकारस्य आ भवति ॥ अप्ति । पाडइ। मारह ।। एति । कारेइ । सामेछ। लुकि । मारिया शामिअं| कारीअइ । खामीअइ | कारिजाइ । खामिज्जइ । प्रदेन्लुकीतिकिम् । कराविरं । करावीश्रइ ॥ कराविज्जइ ॥ श्रादेरितिकिम् । संगामेइ । इह ध्यहितस्य मा भूत् ॥ कारिअं : इहान्त्यस्य मा भूत् ।। अत इति किम ॥ दूसेइ ।। केचित्त आवे आव्यादेशयोरप्पाइरत प्रात्वमिच्छन्ति । कारावेइ। हासावित्री जणो सामलीए ।
अर्थ:-प्राकृत-धातुओं में जिन्त अर्थात प्रेरणार्थक भाव में सूत्र संख्या ३-१४६ के अनुसार प्राप्तव्य प्रत्यय 'श्रत अथवा एत' को प्राप्ति होने पर याद उन प्राकृत-धातुओं के आदि में 'अ' स्वर रहा हुआ हो तो उस आदि 'अ' के स्थान पर 'पा' की प्राप्ति हो जाया करती है । इसी प्रकार से सूत्र-संख्या ३-१५२ के अनुसार प्रेरणार्थक-भाष के साथ में भून-कदन्तीय प्रत्यय 'त' के कारण से और कर्मणिवाचक-भाव-वाचक प्रत्ययों के संयोग से लुप हुए प्रेरणार्थक-भाव-सूचक-प्रत्ययों के अभाव में प्राकृतधातुओं के आदि में स्थित्त 'अ' के स्थान पर 'श्रा' की प्राप्ति होती है। सारांश यह है कि णिजन्त-बोधक प्रत्यय 'अत् एत' के सदभाव में अथवा पिन्त-बोधक-प्रत्ययों की लोप-अवस्था में धातु के आदि 'अकार' को 'आकार' को प्राप्ति हुआ करती है । 'श्रत मे सम्बन्धित उदाहरण इस प्रकार हैं:-पातयतिम्पादः वह गिराता है । मारय ते - मारइवह भारता है । इन ‘पड़ और मर' धातुओं में काल-बोधक प्रत्यय 'इ' के पूर्व में णिजन्त-बोध 'अत प्रत्यय का सद्भाव होने से इनमें स्थित श्रादि 'अकार' को 'श्राकार' की प्राप्ति हो गई है। इसी प्रकार na' प्रत्यय से सम्बन्धित उदाहरण निम्न प्रकार से हैं:-कारयत्तिकारेइ = वह कराता है; क्षाभयति = खामेह - वह क्षमा कराता है। इन 'कर और खम' धातुओं में काल. बोधक प्रत्यय 'इ' के पूर्व में णिवन्त-बोध । एत' प्रत्यय का सद्भाव होने से इनमें स्थित श्रादि 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति हो गई है । भूत दन्त प्रत्यय 'त के सद्भाव में णिजन्त-बोधक प्रत्ययों के लोप हो जाने पर धातुओं के आदि 'अकार' को आकार की प्राप्ति होने के उदाहरण इस प्रकार हैं:कारितम् = कारिश्र = कराया हुत्राः क्षामितम्यामिश्रं = क्षमाया हुश्रा, इन 'कर और म' धातुओं में भूत-कृदन्त योधक प्रत्यय 'त: अ' के पूर्व में णि नन्त-बोधक-प्रत्यय का लोप हो जाने से इनमें स्थित आदि 'अकार' को 'श्राकार' का प्राप्ति गे गई है। कमणि-प्रयाग और भाव- योग का सद्भाव होने पर णिजन्त-बोधक-प्रत्ययों के लोप हो जाने पर धातुओं के अादि 'प्रकार' को 'प्राकार' को प्राप्ति होने के उदाहरण इस प्रकार जाननाः -कार्यते = कार्यश्रइ अथवा कारिजइ = उससे कराया जाता है; साम्यते = खामोश्रद अथवा खामिज्जई = उससे क्षमाया जाता है। इन कर और खम' धातुओं में प्रयुक्त कर्मणि-प्रयोग एवं भावे-प्रयोग-द्योतक प्रत्यय 'ईश्र और इज' के पूर्व में णिजन्त-बोधक-प्रत्ययों के लोप हो जाने पर इन धातुओं में स्थित प्रादि प्रकार' को 'सरकार' की प्राप्ति हो गई है। अन्यत्र भी जान खेना चाहिये।