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________________ [२५ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित morrowerror000000000000000000000000000000000000000000000000000000 'स्था' के आदेश प्राप्त संस्कृत रूप 'तिष्ठ' के स्थान पर प्राकृत में 'हा' रूप की प्रामेश प्राप्ति और ३-१४० से वर्तमान काल के द्वितीय पुरुष के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में भी 'सि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर ठासि प्राकृत रूप सिब हो जाता है। उहात सस्कृत का वर्तमानकाल का प्रथम पुरुष का एकवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप वसुबाई होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-११ से संस्कृतीय मूल धातु 'उद्वा' के स्थान पर प्राकृत में 'वसुधा' रूप अंग की प्राप्ति और ३.१३६ से वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तम्य मस्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप 'यमुआई' सिद्ध हो जाता है । उद्घासि संस्कृत का वर्तमानकाल को द्वितीय पुरुष का एकवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप वसुप्रासि होता है। इसमें सूत्र संख्या ४.११ से संस्कृतीय मून धातु 'उद्वा' के स्थान पर प्राकृत में 'वमुश्रा' रूप धातु अंग की प्राप्ति और ३.१४० से वर्तमानकाल के द्वितीय पुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के मभान हो प्राकृत में भी 'सि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृतीय क्रियापद को रूप पसुआरी सिद्ध हो जाता है। 'होइ' ( क्रियापद ) रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १.९ में की गई है। भवार्स संस्कृत का वर्तमानकाल का द्वितीय पुरुष का एकवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप होसि होता है । इसमें सूत्र-संख्या ४-६० से संस्कृतीय मूल धातु 'भू-भव' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' रूप की आदेश-प्राप्ति और ३-१४० से वर्तमानकाल के द्वितीय पुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्रारम्य प्रत्यय 'सि' के समान ही प्राकृत में भी सि' प्रत्यय की प्राप्त होकर प्राकृत रूप होसि सिद्ध हो जाता है। 'हसई' ( क्रियापद ) रूप को सिद्धि सूत्र संख्या ३-१३९ में की गई है। 'हसास' ( क्रियापद) रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३.१४० में की गई है। 'वेषई' ( क्रियापद) रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३.१३९ में की गई है। 'पास' ( क्रियापद) रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१४० में की गई है। सिनास्तेः सिः ॥ ३-१४६ ॥ सिना द्वितीय त्रिकादेशेन सह अस्तेः सिरादेशो भवति ॥ निट्टरो सि ।। सिनेतिकम् से भादेशे सति अस्थि तुम ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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