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________________ * प्राकृत व्याकरण * [२३३ ] •norrrrrrrrrrrrrrrrrorosconstor.or.000000setstrost000000000000000000 अर्थ:--प्राकृत-भाषा में कभी कभी द्वितीया विभक्ति और तृतीया विभक्ति के स्थान पर मप्तमी विभक्ति का प्रयोग भी पाया जाता है। उदाहरण इस प्रकार हैं:-प्रामम् वमामि=गामे वमामि अर्थात मैं शाम में वमना ई; नगरम् न यामिन्जयरे न जामि अर्थात में नगर को नहीं जाता हूं; इन उदाहरणों म संस्कृत में प्रयुक्त द्वितीया विभक्ति के स्थान पर प्राकन में मप्रमी का प्रयोग किया गया है। हनीया के स्थान पर मामा के प्रयोग के दृष्टान्त इस प्रकार है: मया वेपमा मदिताईन-मइ वेविगए मलो प्राइ' - कोपती हुई मेरे द्वारा वे मदत किये गये हैं। त्रिभिः तः अलंकृता पोउन टोनों द्वारा पृथ्वी अलंकृत हुइ है । इन दृष्टान्तों में संस्कृतीय तृनो या विभक्ति के स्थान पर प्राकृत में मनमो विभक्ति का प्रमोद मिट गोचर हो गया है । प्राकृत में कभी कभी और कहीं कहीं पर विभक्तियों के प्रयोग में धनियमितता पाई जाती है। श्रामम् संस्कृत द्वितीया विभक्ति का एकवचनान्त रूप है । इपका प्राकृत का गामे है । इसमें सूत्र-संख्या २-E से 'र' का लोप; ३ १३५ से द्वितीया के स्थान पर प्राकृत में मनमा विभक्ति के प्रयोग करने की श्रादेश-प्रामि; ३.११ से प्राप्त प्राकृत शउन 'काम' में सामीविभक्ति एकवचन में संस्कृतीय प्रात्रभ्य प्रत्यय लि-इ' के स्थान पर प्राकृत में 'डे' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गामे रूप सिद्ध हो जाता है। सामि संस्कृत के वर्तमानकालीन तृतीय पुरुष का एकवचनान्त अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप भा वमामि ही होता में । इसमें सूत्र-संख्या ४-२३६ सं मूल प्राकृत हलन्त धातु 'वस्' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-१५४ से ग्राम विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति और ३-१४१ से पान धातु 'वपा' में वर्तमान कालीन तृतीय पुरुष क एकवचन में 'मि' प्रत्यय की प्रामि होकर यसामि रूप सिद्ध हो जाता है । नगरं संस्कृत के द्वितीया विभक्ति का एकवचनान्त नपुंसकलिंग का रूप है । इसका प्राकृत रूप नयरे (प्रदान किया गया है । इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'ग' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'ग' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; ३-१३५ से द्विनीया के स्थान पर प्राकृत में सप्तमी विभक्ति के प्रयोग करने को आदेश-पादित और ६-११ से प्राप्त प्राकृत शब्द 'नयर' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रासम्म प्रत्यय 'विइ' के स्थान पर प्राकृत में 'डे=7' प्रत्यय की प्राप्ति होकर नयरे रूप लिक हो जाता है। '' अव्यय रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-5 में की गई है। 'जामि' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र संखया २-२०४ में की गई है। मया संस्कृत की तृतीया विभक्ति का एकवचनान्त अस्मद् मर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृन रूप मह है। इसमें सूत्र संख्या ३-१३५ से तृतीया के स्थान पर प्राकृत में मामी विभक्ति के प्रयोग
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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