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________________ [ २३२ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * ++++++++&+4 :4966 % ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ पादान्तिम मत-साहितेभ्य: संस्कृत पञ्चमी विमक्ति को बहुवचनान्त विशेषणात्मक रूप है। इसका प्राकृत रूप पायन्तिमिल्ल सहिबाण है । इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'द्' व्यञ्जन का लोप; १-१८० से खोप हुए 'द्'न्यजन के पश्चात शेष रहे हुए 'पा' को 'या' की प्राति १-८४ से प्राप्त 'या' में स्थित दीर्घ स्वर 'बा' के स्थान पर आगे संयुक्त व्यञ्जन 'न्ति' का सद्भाव होने से इस्त्र स्वर 'अ' की मान; २.१५ से संस्कृताय प्रत्यय 'मत' के स्थान पर प्राकृत में 'इल्ल' प्रत्यय की प्राप्तिः १-१० से प्रान पाकन रूप 'पायन्तिम' में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' के आगे प्रात्र प्रत्यय 'इत्ल' में स्थित स्वर 'इ' का सद्भाव होने से लोप; १-५ से प्राप्त प्राकृत रूप पायर्यान्तम् + इल्ल' में संधि होकर प्राकृतीय रूप पार्यान्समिल्ल की प्राप्ति; १-१७७ से 'सहित' में स्थित 'त' व्यञ्जन का लोप; ३-१३४ से पञ्चमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति के प्रयोग करने की श्रादेश-प्राप्ति ३-१२ से प्रान्तीय प्राप्त रूप पायन्तिमिल्ल-साहिश्र' में स्थित अन्त्य इव स्वर 'अ' के स्थान पर षष्ठी यिभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय का समाव होने से दीर्घ स्वर 'आ' को प्रानि और ३-६ से प्रात प्राकृत रूप 'पायन्तिमिल-सहिया' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'ग्राम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत पद पायान्तमिल्ल. सहिआण की सिद्धि हो जाती है। पृष्ठे संस्कृत सप्तमी विभक्ति का एकवचनान्त नपुसक लिं । रूप है। इसका प्राकृत रूप पिट्टीए है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२८ से 'ऋ' के स्थान पर ह. की प्राप्ति २.७७ से 'प' का लोप; 2-1 से लोप हुए 'प' के पश्चात शेष रहे हुए '४' को द्वित्व 'ठठ' की प्राप्ति २६० से प्राप्त पूर्व '४' के स्थान पर 'द' की प्राप्ति; १-३५ की वृत्ति से मूल संस्कृत शब्द पृष्ठ को नम जिगत्व से प्राकृत में श्रीलियन की शाप्ति; तदनुमार ३-३१ और २-४ से प्राकुन में प्राप्त शब्द 'पिटु' में बोलिंगत्य-योतक प्रत्यय डीई' की प्राप्ति -१३४ से संस्कृनीय सप्तमी विमक्ति के स्थान पर प्राकृत में षष्टी विभक्त के प्रयोग करने की आदेश-प्राप्ति; तदनुसार ३-२६ से प्राप्त प्राकृत स्त्रीलिंग रूप पिट्टी में षष्ठो विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'इस = अस' के स्थान पर 'ए' प्रत्यय को प्राप्ति होकर प्राकृत रूप पिट्ठीए सिव हो जाता है। केश-भारः संस्कृत प्रथमा विभक्ति का एकवचनान्न पुल्लिग रूप है। इसका प्राकृत रूप केश-भारी होता है। इसमें सूत्र संख्या १.२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति, ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय नस' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-यो' की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप केश-भारो सिद्ध हो जाता है । ११४ ॥ द्वितीया-तृतीययोः सप्तमी ॥ ३-१३५ द्वितीया तृतीययोः स्थाने कचित् सप्तमो भवति ॥ गामे यसामि । नयरे न जामि । भत्र द्वितीयायाः ॥ मइ वेविरीए मलिआई ॥ तिसु तेसु प्रलंकिया पुहवी । अत्र तृतीयायाः ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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