SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 10000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000004 घेणुगो । महूओ आगो । एवं गिरीहिन्तो । गिरीसुन्तो आगो इत्यापि ॥ सुप् । गिरीसु । युद्धीसु । दहीसु । तरूसु । घेणुसु । महमु ठियं । कचिन भवति । दिन-भूमिसु दाण-जलोल्लिाई ॥ इदुत इति किम् । बच्छेहिं । वच्छेसुन्तो । वच्छेसु । भिस्म्पस्सु पीत्येव । गिरिवर पेच्छ ॥ ___ अर्थः-प्राकृतीय हव इकारान्त और उकारान्त पुल्लिग, नपुसकलिंग और स्त्रीलिंग शब्दों में तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतोय प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर आदेश-प्राप्त 'हि, हिं और हिं' प्रत्ययों की प्राप्ति होने पर एवं पंचमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय-प्रत्यय 'भ्यस' के स्थान पर आदेश-प्राप्त 'श्रो, उ, हिनो और सुन्तो' प्रत्ययों की प्राप्ति होने पर और सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'सुप' के स्थान पर 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर हस्व अन्त्य स्वर 'इ' का अथवा 'उ' का दीर्घ स्वर 'ई' और 'क' यथा क्रम से हो जाते हैं । जैसे:-'मिस्' प्रत्यय से संबंधित उदाहरण:-- गिरिभिःम्गिरीहिं; बुद्धिभिः-शुद्धोहि; दधिभिः = दहीहि; तरभिः = तरूहि; धेनुभिः = धेरराहिं और मधुभिः कृतम् - महूहिं कयं । इत्यादि । "भ्यस्' से संबंधित उदाहरणः-गिरिभ्यः = गिरीी, गिरीहिन्तो और गिरोसुन्तो । बुद्धिभ्यः = बुद्धिश्रो । दधिभ्या=दहीभो । तरुभ्यः-तरूयो। धेनुभ्यः घेणूओ और मधुभ्यः प्रागतः = महश्रो श्रागी । इत्यादि । 'सुप्' से संबंधित उदाहरणः-गिरिषु गिरीसु । बुद्धिषु = युद्धीसु । दधिषु = दहीसु । तरुपु= तहसु । धेनुषु = धेरणू सु और मधुषु स्थितम् = महसु ठियं । इत्यादि । किन्हीं किन्हीं शब्दों में सु' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर ह्रस्व अन्त्य 'इ' अथवा 'उ' का दीर्घ 'ई' अथवा 'क' नही भो होता है । जैसे:-द्विजभूमिषु दान -जलाीकृतानि = दिन-भूमिसु दाण-जलोल्लिाई। इस उदाहरण में 'भूमीसु' के स्थान पर हस्व इकारान्त रूप कायम रह कर 'भूमिसु' रूप ही दृष्टि-गोचर हो रहा है; यो अन्यत्र भी जान लेना चाहिये। प्रश्न- 'इकारान्त' 'उकारान्त' शब्दों में ही 'भिस्, भ्यस् और सुप् प्रत्ययों के प्राप्त होने पर मन्त्य हुस्व स्वर के स्थान पर दीर्घ स्वर हो जाता है ऐसा क्यों लिखा है ? उत्तरः--जो प्राकृत शब्द 'इकारान्त' अथवा 'उकारान्त' नहीं है। उन शब्दों में 'भिस्, भ्यस् और 'सुप' प्रत्ययों की प्राप्ति होने पर भी अन्त्य हुम्व स्वर का दीर्घ स्वर नहीं होता है; अतः ऐसा विधान फेवल इकारान्त और खकारान्त शब्दों के लिये ही करना पड़ा है। जैसे:-वृक्षः = बच्छेहि; वृक्षेभ्यः = चच्छेसुन्तो और वृक्षपु-वच्छेसु । इन उदाहरणों में 'वच्छ' शब्द के अन्त्य हस्य स्वर 'अ' को दीर्घ स्वर 'पा' को प्राप्ति नहीं हुई है। इस प्रकार 'हस्व से दीर्घता' का विधान केवल इकारान्त और उकागन्त शब्दों के लिये ही है; यह सिद्ध हुश्रा । प्रश्नः-'भिस्, भ्यस और सुप्' प्रत्ययों के प्राप्त होने पर ही ह्रस्व 'इकारान्त' और हस्ब 'वकारान्त' के अन्त्य 'स्वर' को दीर्घता होती है; ऐसा उल्लेख क्यों किया गया है?
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy