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________________ [ २१८] * प्रियोदय हिन्ही व्याख्या सहित * oconorroristerestronxossworrrrrrrrrrrrrrrrrrrtoonsortinsonsksistan संख्या ३-१२ से और ३.१६ से कम से एकवचन में और बहुवचन में मून शब्द गुरु में स्थित अन्त्य हस्त्र स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'अ' को प्रामि, तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३.८ से और ३-६ से तथा ३-१२४ के निर्देश से प्राप्त प्राकृत रूप 'गुरू' में पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतोय प्राप्तव्य प्रत्यय 'इसि-प्रस' के स्थान पर प्राकृत में 'दो - श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति एवं इमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रामण्य प्रत्यय 'भ्यस' के स्थान पर भी दो = श्रो' प्रत्यय को प्राप्ति होकर दोनों वचनों में समान स्थिति घाला प्राकृताय रुप गुरूओ सिद्ध हो जाता है। मागओ क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-०९ में की गई है। 'गिरीण' रूप की सिद्धि इसी सूत्र -१४ में ऊपर की गई है। 'गृरूण' रूप की सिद्धि इसी मूत्र ११४ में ऊपर की गई है। 'घ' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या 3-५० में की गई है। १२४॥ न दीपों णो ॥ ३-१२५॥ इदन्तयोराजस्-शस् स्यादेशे णो इत्यस्मिन् परतो दीघों न भवति || अग्गियो। वाउणो ॥ णो इति किम् अग्गी । अग्गीश्री ॥ अर्थ:--इकारान्त अकारान्त शब्दों में सत्र मंख्या ३-२२ के अनुमार प्रथमा और द्वितीया विभक्ति के बहु वचन में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस' और 'शस के स्थान पर प्राकृत में 'मो' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर इन शब्दों में स्थित अन्त्य हम्ब स्वर 'इ' अथवा 'ड' को दोस्व की प्राप्ति नहीं होती है। इसी प्रकार से सत्र संख्या ३-२३ के अनुमार इन्ही इकागन्त और उकारान्त शब्दों में पंचमी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्तम्य प्रत्यय 'सि-अप्स' के स्थान पर प्राकृत में 'नो' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर अन्त्य इस्व स्वर 'इ' अथवा 'उ' को दीर्धत्व की प्राप्ति नहीं होती है। चनाहरण इस प्रकार हैअग्नयः= अम्गिणी; अग्नीन् = अग्गियो । बाथव :- वारणो; वायून = वाजणो पंचमी विभक्ति के एक षचन के उदाहरण इस प्रकार है:- अग्नेः = अम्गिणो और वायोः । दाउणो; इत्यादि। प्रश्नः-- उक्त विभक्तियों में और सत शब्दों में 'नो' प्रत्यय का सवभाव होने पर अन्त्य इव स्वर को दीर्घता की प्राप्ति नहीं होती; ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तर:- क्योंकि यदि उक्त विभक्तियों में 'नो' प्रत्यय का सदभाव नहीं होकर अन्य प्रत्ययों का का सदभाव होगा ऐसी दशा में इकारान्त और वकारान्त शब्दों में स्थित अन्य इस स्वर को पीता की प्राप्ति हो जानी है। उदाहरण इस प्रकार है:- अग्नय :- अमी; अग्नीन; * अगा, अग्ने अमीनो 'वायच :- वार; वायून - वाऊ वार्योः = वाऊो; आदि। 'अग्गियो' पाउणों और 'अग्गी, रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या 420 में की गई है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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