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* प्राकृत व्याकरण *
[ २१३ ] Matrosssssssssssadiworroristassornworosiretrroristmorrorension
माला संस्कृत प्रथमा विभक्ति और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन का लीलिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप माला होता है। इसमें सत्र-संख्या ३-४ में संस्कृत प्रथमा और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तध्य प्रत्यय जस और स. का प्राकन ने साप हो र ति कप बाला सिद्ध हो जाता है।
गिरयः और गिरीन संस्कृत में कम में प्रथमा विभक्ति और द्वितीया विमक्ति के बहुवचनीय पुलिंग रूप हैं । इन दोनों का प्राकृत समान रूप गिरी होता है। इसमें सत्र-संरख्या ३.१२ से और ३.१८ से मूल प्राकृत रूप गिरि में स्थित अन्त्य हस्य स्वर 'इ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति; तत्पश्चात् ३.४ से संस्कृतीय प्रथमा और द्विनीया विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय जम् और शम का प्राकृत में लोप होकर दोनों विभक्तियों के बहुवचन में प्राकृत रूप गिरी सिद्ध हो जाता है।
गुरवः और गुरून संस्कृत में कम से प्रथमा विभक्ति और द्वितीया विभक्ति के बहुवचनीय पुल्लिंग रूप हैं । इन दोनों का प्राकृत रूप गुरू होता है। इस में सूत्र-संख्या ३-१२ से और ३-१८ से मूल प्राकृत रूप गुरु में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'उ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'क' को प्राति; तत्पश्चात् ३-४ से संस्कृतीय प्रथमा और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय जस् और शम का प्राकृत में लोप होकर दोनों विभक्तियों के बहुषचन में प्राकृत रूप गुरू सिद्ध हो जाता है।
'सही प्रथमा द्वितीया विभक्ति के बहुवचनान्त रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३.२७ में की गई है। 'वह' प्रथमा द्वितीया विभक्ति के पहुवचनान्त रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३.२७ में का गई है। 'रेहान्त' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र संख्या 1-17 में की गई है। 'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-में की गई है। 'या' अन्यय रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-६७ में की गई है। 'गिरि' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२३ में की गई है।
गुनम् संस्कृत द्वितीया विभक्ति का एकवचनान्त पुल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप गुरुं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३.५ से संस्कृतीय प्रापन्य प्रत्यय 'अम्' में स्थित 'अ' का लोप होकर प्राकृत में म् प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्रात प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप गुरुं सिद्ध हो जाता है।
सखीम् संस्कृत द्वितीया विभक्ति का एकवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप सहिं होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१८ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; ३.३६ से प्राप्त रूप सही' में स्थित अन्त्य दीर्घ स्वर 'ई' के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'इ' की प्राप्ति, ३-५ से द्वितीया विभक्ति के प्रावधान में प्राकृत में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२५ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप सहिं सिद्ध हो जाता है।