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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [ १८७ ] ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ ++++ क्रम से प्रामि, तत्पश्चात सूत्र-संख्या ४-४५८ से प्राप्रांग इन पांचों क्रम से सप्रमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सुप =सु' के समान ही प्राकृत में भो 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति एवं द्वितीय से पंचम रूपों में सूत्र संख्या ३-१५ से प्राप्तांग में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'श्रागे सप्तमी बहुवचन बोधक प्रत्यय 'सु' का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति होकर क्रम से पांच रूप तुसु, तुसु. तुम मु. तुहेसु, और तुभेमु सिद्ध हो जाते हैं। छठे और सातवें कपों में पूत्र मरूपा ३-१०४ के विधान से उपरोक्त पांचवें प्राप्तांग में स्थिन 'क' अंश के स्थान पर कम से तथा वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'म' अंश की प्राप्ति होने से 'तुम्ह और तुजम' श्रंग रूपों की प्राप्ति एवं शेष सावनिका की प्राप्ति उपरोक्त सूत्र-रूश ३-१५ तथा ४-४४% से होकर छट्टा तथा सातवा रूप तुम्हसु और तुझे तु मी सिद्ध हो जाते हैं श्राठवं रूप से लगाकर तेरहवें सप तक में सूत्र संख्या ३.१०३ की वृत्ति से पूर्वोक्त सातो अंग रहों में स्थित अन्त्य स्वर 'अ के स्थान पर सूत्र-संख्या ३-१५ से प्राप्तव्य 'ए' को निषेध स्थिति; एवं यथा-प्राप्त अंग हपों में हो सूत्र संख्या ४.४४८ से सप्तमी के बहुवचनार्थ में 'मु' प्रत्यय का प्राप्ति होकर पाठवें रूप से तेरहवें भी अर्थात 'तुपसु, जुमगु, सुरज, तुमसुमसु, और नुअझ तु' रूपों की सिद्ध हो जाती है। शेष चौदह रूप से लगाकर मालवे रूप में सूत्र-संख्या ३-२०३ की वृत्ति से पूर्वोक्त प्राप्तांग 'तुम, तुम्ह और तुझ में स्थित अन्य स्वर 'श्र' के स्थान पर 'श्रा' की प्राप्ति; यो प्राप्तांग प्राकारान्न रूप में पत्र संख्या ४.१४% से पानमा विभक्ति के बहुवचनार्थ में 'सु प्रत्यय का संभानि होकर चौदहवां पन्द्रहवां और सो नहबां 'तुमासु 'तुम्हासु पोर तुमासु' भी सिद्ध हो जाते हैं. १ ३-१०३ ।। भो म्ह-जमो वा ॥३-१०४ ।। युष्मदादेशेषु यो द्विरुक्तो मस्तस्य म्ह उझ इत्येताबादेशी वा भवतः ।। पचे स एवास्ते । तथैव चोद हितम् ।। अर्थ.-उपरोक्त सूत्र संख्या ३.६१ ३-६३, ३-६५, ३-६६, ३.६७. ३.६८, ३-६६, ३.१००, ३-१०२ और ३.१०३ में ऐमा कयन किया गया है। के संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मदू' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'तुम' अंग रूप की आदेश पारि हुमा करता है; यो प्रप्तांग 'तुम्म' में स्थित संयुक्त ध्यान उभ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से एवं क्रम से 'मह' और 'म' अंश रूप की प्राप्ति इस सूत्र ३.१०४ से छुपा करता है। तदनुसार 'तुभ' अंग रूप के स्थान पर 'तुम्ह' और 'तुझ' मंग रूपों की भी कम से तथा बैकल्पिक रूप से संप्राप्ति जानना चाहिये । वैकल्पिक पा का सद्भाव होने से पक्षान्तर में 'युष्मद्' के स्थान पर 'तुम्म' अंग रूप का अस्तित्व भी कायम रहता ही है। इस विषयक
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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