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________________ [ १८६ ] प्राकृत का कारण +0000000dsoonsore46000000000000+storri.00000000000000000000000000+ 'म्मि' प्रत्यय की श्रादेश-प्राप्ति होकर कम से बातों रूप तुम्पि, तुमित, तुमझिम, नुहम्मि, नुमम्मि, तुम्हम्मि और तुझम्मि' सिद्ध हो जाते हैं । ३-१६२ ॥ सुपि ॥ ३-१०३ ॥ युप्मदः सुपि परतः तु तुव तुम-तुह-तुमा भवन्ति ।। तुसु । तुयेसु । तुमेसु । तुहेसु । तुम्भेसु || मी म्ह-ज्मी चेति वचनात् तुम्हे यु । तुज्झे ।। केचितु सुष्यत्व विकल्पमिच्छन्ति । तन्मते तुवसु | तुम मु | तुहसु । मसु। तुम्हसु । तुज्झगु ॥ तुम्भस्यात्वपपीच्छत्यन्यः । तुम्भासु | तुम्हासु तुज्झासु ) अर्थ:-संस्कृत पर्वनाम शब्द "युष्मद्" के प्राकृत रुपान्तर में मामा विभक्ति के बहुववन में "सुप-सु" प्रत्यय परे रहने पर "युष्मद्' के स्थान पर प्राकृत में पाँच अग रूग की आदेश-प्राप्ति हुश्रा करती है। जो कि इस प्रकार है:- युष्मद्-तु, तुब, तुम, तुह और तुम्भ उदाहरण यों हैं:- युष्मासु-तुक्ष, तुबसु, तुमसु, । तुहेसु, और तुभेसु । सूत्र-पंख्या ३-१४४ के विधान से पंचम-अंग रूप 'तुम्भ' में स्थिन 'A' अंश के स्थान पर कम से और वैकल्पिक रूप से 'मह' और 'a' अंश की प्राप्ति हुपा करती है, तदनुसार दो अंग रूपों का पानि और होती है:-तुम्ह तथा तुज्झ । यो प्रामांग 'तुम्ह' और तुझ' में 'सु प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'तुम्हेसु' तथा 'तुम्झसु' रूपों को संयोजना होती है । कोई कोई व्याकरणाचार्य 'सु' प्रत्यय परे रहने पर उपरोक्त रीति से प्राप्तांग अकारान्त रूपों में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर अपर-वर्णित एवं सूत्र-संख्या ५-१५ से प्रात्तव्य 'ए' की प्राप्ति का विधान वकल्पिक रूप से ही मानते हैं; नननुभार 'युमा' के छः प्राकृत रूपान्तर और धनते हैं; जो कि इस प्रकार हैं:--- युष्मासु= तुबसु, तुमसु. तुह्सु सुम्भसु, तुम्हमु और तुझसु । ऊपर बाल रूपों में और इन कपों में परस्पर में 'सु' प्रत्यय के पूर्व में स्थित प्राप्तांग के अन्त में रहे हुए अथवा प्राप्त हुए 'ए' और 'अ' स्वरों की उपस्थिति का अथवा अभाव ६१ का ही अन्तर जानना । कोई कोई प्राकृत-भाषा-तत्त्वज्ञ प्रातांग तुम' में स्थित अनध स्वर 'अ' के स्थान पर 'स' प्रत्यय रे रहने पर 'आ' का सभात्र भी वैकल्पिक रूप से मानते हैं । इनके मन से 'युष्मासु' के तीन और प्राकृत रूपालगे का निर्माण होता है; जो कि इस प्रकार हैं:-'युष्मासु' = तुम्मासु, तुम्हासु और नुज्झासु । इनका अर्थ होता है:-श्राप मभी में । 'युमा' संस्कृत सप्तमी बहुवचनान्त (त्रिनिगात्मक) मवनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप १६ होते हैं जो कि इस प्रकार है:-तुपु, तुबसु, तुमेमु. सुद्देसु तुभेसु, तुम्हे सु. तुझसु, तुबसु. तुमसु, सु, तुठभसु, तुम्हसु, तुझसु. तुम्भास, तुम्हासु और तुज्झासु । इन में से प्रथम पांच रूपों में से सूत्र संख्या ३-१०३ से संस्कृत मूल शब्द 'युष्मद्' के स्थान पर प्राकृत में सप्तमी. विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय की संयोजना होने पर 'तु, तुब, तुम, तुह, तुम्भ' इन पाँच अंग रूपों की
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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