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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित - [११] reasoooooorrearrrrroo0000000000000000000000rnvernmenorrrrowroorroom तुम्ह तुब्भ तहिन्तो असिना ॥ ३-६७ ॥ युष्मदो असिना सहितस्य एने त्रय आदेशा भवन्ति ॥ तुम्ह तुम्भ तहिन्तो आगो । मो म्ह-ज्झी वेति वचनात् तुम्ह । तुज्झ । एवं च पञ्च रूपाणि । ___ अर्थः--संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद् के पश्चमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'इसि -- अस' की संयोजना होने पर प्राप्त संस्कृतीय रूप त्वत' के स्थान पर मांकृत में क्रम से (एवं वैकल्पिक रूप से ) तीन रूपों की आदेश-प्रानि हुआ करती है। ये प्रादश-प्राप्त रूप ये है:'तुरड, तुभ और तहिन्नी' । उदाहरण इस प्रकार हैं:-त्वत श्रागत:-तुयह अथवा तुम्भ अथवा तहिन्तो आगो अर्थात तुम्हारे से- (तेरे से) पाया हुआ है । सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से उपरोक्त प्रादेशप्रान द्वितीय रूप 'पुर में 47 भा १ 'म..' सौर 'झ' की वैकल्पिक रूप से आदेश प्राप्ति हुया करती है, तदनुसार स्वत' के स्थान पर दो और प्रादेश मान रूपों का प्रभाव पाया जाता है। तो कि इस प्रकार है:--'तुम्ह और तुझ' । यो पञ्चमी पकवचनान्त ( में) 'युष्मद' के प्राप्त रूप स्वत्' के उपरोक्त रीति से आदेश प्राप्त पाँच रूप जानना । स्वत (स्वद्) संस्कृत पन्चमी एकवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप पाँच होते हैं:-तुम्ह, तुम, तहिन्तो, तुम्ह और तुन्झ । इनमें सूत्र-संख्या ३.९७ से 'स्वत्' रूप के स्थान पर इन पाँचों रूपों की प्रादेश-प्राति कम से ( तथा वैकल्पिक रूप से ) होकर क्रम से ये पाँचों रूप 'तुम्ह, तुभ. तहिन्ता, तुम्ह और तुज्म' सिद्ध हो जाते है। 'अरगओ' रुप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२०९ में की गई है। ३-६७ ।। तुभ-तुय्होयहोम्हा भ्यसि ॥ ३-६८ ।। युष्मदो भ्यसि परत एते चत्वार आदेशा भवन्ति ॥ भ्यसस्तु यथाप्राप्तमेव ॥ तुभत्तो। तुम्इत्तो । उहत्तो । उम्हत्ती । भो म्ह-जझी वेति वचनात तुम्हत्तो। तुज्झती ।। एवं दो-दु-हि-हिन्तो-सुन्तोष्वप्युदाहार्यम् ।। अर्थ:-संस्कृत सर्वनाम शन 'घुष्मद् के प्राकृत रूपान्तर में पंचमी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य संस्कृतीय प्रत्यय 'यस' के प्राकृतीय स्थानीय प्रस्थय 'त्ती, दोश्रो, दु - 3, हि. हिन्तो और सुन्तो' प्राप्त होने पर 'युष्मद्' के स्थान पर बार आदेश अगों की कम से प्राप्ति हुआ करती है। तत्पश्चात प्रत्येक आदेश-प्राप्त अग में उस पंचमी बहुवचन बोधक प्रत्ययों की संयोजना होती है। बेचारों अम रूप इस प्रकार है:--'जुम्भ तुह, उमह और सम्ह' । सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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