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________________ [१८० ] प्राकृत व्याकरण* .000000000000000000serte.netoroork.000000000000000000000000000000000+ अर्थ:-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के प्राकृत-रूपान्तर में पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रामव्य प्रत्यय 'मि - अस' के प्राकृतीय स्थानीय प्रत्यय 'लो, दोश्रो, दु, हि. हिन्ता और लुक' प्रत्ययों को क्रम से प्राप्ति होने पर सम्पूर्ण मूल संस्कृत शब्द 'युष्मदू" के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में क्रम से पाँच अंग रूपों की प्राति होती है; जो कि कम से इस प्रकार है: -तइ, तुत्र, तुम तुह और तुम्भ । सूत्र-संख्या ३.१०४ के निर्देश से प्रातांग पाँचवें रूप 'तुम' में स्थित 'भ' अंश के स्थान पर क्रम से एवं वैकल्पिक रूप से 'म्ह और ज्झ' अंश रूप की आदेश-प्राप्ति हुआ करती है। यों 'युष्मद' के जत पाँच अंग रूपों के अतिरिक्त ये दो रूप 'तुम्ह और तुझ' और होते हैं। इस प्रकार 'युष्मद' के प्राकृत रूपान्तर में पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में प्रत्ययों के संयोजनार्थ सात अंग रूपों की कम से प्राप्ति होती है। तत्पश्चात सातों प्रामांगो में से प्रत्येक अंग में कम से { एवं वैकल्पिक रूप से ) छह छह प्रत्ययों को अर्थात 'तो, ओ, उ, हि, हिन्तो और लुक' प्रत्ययों की प्राप्तिकाती है । इस प्रकार 'युष्मद् के पञ्चमो विभक्ति के एकवचन में प्राकृत में बयालीस ( = ४२) रूप होत हैं; जो कि कम से इस प्रकार हैं:-'तई अंग के रूपः-तइत्तो, तईओ, तईल, तईहि, तईहिन्तो और तई (त्वत-) अर्थात तेरे से । 'तुव' अंग के रूपः- तुबत्तो, सुवाओ, तुषार) सुवाहि. तुवाहिन्तो और तुवा (स्त्वत्) अर्थात तेरे से। 'तुम' अंग के रूपः-तुमती, तुमाश्रो, तुमाउ, तुमाहि, तुमाहिन्तो और तुमा (त्वन्-) अर्थात तेरे से। यों शेषांग 'तुह, तुम्भ, तुम्ह, और तुझ' के रूप भी समझ लेना चाहिये । प्राकृत में प्राप्त रूप 'तसो' की प्राप्ति 'स्वत:' से हुई है। इसमे सूत्र-संख्या २.७ से 'व' का लोप हुआ है और १.३७ से विसग के स्थान पर 'छो-ओ' की प्राप्ति होकर 'तत्ता प्राकृत रूप निर्मित हुआ है । अतः इस रूप 'तत्तो' को उक्त ४२ रूपों से भिन्न हो जानना। नीचे साधनिका उन्हीं रूपों की की जा रही है; जो कि ति में उल्लिखित हैं; अत. प्रामध्य शेष रूपों की सानिका स्वयमेव कर लेनी चाहिये । त्वव ( अथवा 'स्वद्') संस्कृत पञ्चमी एकवचनान्त ( त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप तइत्तो. तुबत्तो, तुमत्सो, सुइत्तो, तुठभत्तो, तुम्हत्तो और तुज्झत्तो होते हैं। इनमें से प्रथम पाँच रूपों में सूत्र-संख्या ३.६६ से मूल संस्कृत शब्द 'युष्मद्' के स्थान पर क्रम से पाँच अंगों को आदेश-प्रामि; छट्टे और सातवें रूपों में सूत्र-संख्या ३.१०४ के निर्देश से छटे और सातवें अंग रूप की प्राति तत्पश्चात ऋम से सातों अंग-रूपों में सूत्र-संख्या ३-८ से पंचमो विभक्ति के एकवचनार्थ में 'तो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कम से सातों रूप-तइत्तो, तुरुत्तो, तमत्तो, तुहत्तो, नुमत्तो, तुम्हत्ता और तुज्झत्तो सिद्ध हो जाते हैं। स्वतः संस्कृत तद्धित-रूपा शब्द है। इसका रूप तत्ता होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से 'व' का लोप और १-३७ से विसर्ग के स्थान पर 'टोपी' की प्राप्ति होकर प्राकृत तद्धित रूप 'तत्तौ' सिद्ध हो जाता है। ३६६ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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