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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [१६७ ] Moonsetorrearrketressorrorobretorono.00000maroorkersona0000000000oor प्रश्नः-पूत्र में वर्णित-विधान में 'नपुसकलिंग' का निषेध क्यों किया गया है ? उत्तरः---नमकलिंग में 'सद्' और 'एनद्' शब्द में 'सि' प्रत्यय परे रहने पर भी प्राकृत *.पान्तर में 'त' व्यन्न के स्थान पर 'स' व्यञ्ज । की आदेश प्रानि नहीं होती है, इसलिये 'नमकलिंग' या निषेध किया गया है। उदाहरण इस प्रकार है.--तत एतत वनम् = तं एवणं अर्थात यह वही वन है । इस प्रकार यह प्रमाणित होता है कि केवल पुल्लिंग और ब्रीलिंग में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में ही 'नद्' और 'एनद्' के प्राकृत रूपान्तर में 'त' के स्थान पर 'सि' प्रत्यय परे रहने पर 'स' की प्राप्ति होता है; अन्यथा नहीं। 'सो' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-९७ में की गई है। 'पुरिसो' रूप की मिद्धि मूत्र-संख्या १-४२ में की गई है। 'सा' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३३ में की गई है। 'महिला' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १.३४ में की गई है। 'एसो' कप की मिद्धि सूत्र संख्या -११६ में की गई है। 'पिओ' रूप की सिद्धि सत्र संख्या १-४२ में की गई है। एगा'प की सिद्धि मूत्र संख्या १3 में की गई है। 'मुद्धा' रूप की सिद्धि मूत्र संख्या ३.९ में की गई है। में रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३.५८ में की गई है। .!ए' मा की मिद्धि सूत्र संख्या ३.४ में की गई है। 'धन्ना' रूप का सिद्धि सूत्र-संख्या :-१८४ में की गई है। 'नाः' मन प्रथमा बहुवचनान्त स्त्रीजिंग विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप ताओ होता है। इममें सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'नंद' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'द्' का लोप; ३-३१ और .४ के निर्देश से प्रारंम 'ते' में पुल्लिगाय से स्त्रीनिंगत्व के निर्माण हेतु 'या' प्रत्यय की प्राप्ति और ३.२६ से प्राशंग 'ता' में प्रथमा विक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रातव्य प्रत्यय 'जस' के स्थान पर प्राकृत में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'ताओ' रूप सिद्ध हो जाता है। एताः संस्कृत प्रथमा बहुवचनान्त स्त्रीलिंग विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप एआयो होना है। इसमें सूत्र-संख्या १.११ से मूल संस्कृन शब्द 'एतद्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन द्' को लोप ९.१७७ से 'त' का लोप; ३-३२ और २-४ के निर्देश से प्राप्तांग 'ए' में पुल्लिंगत्व से स्त्रीलिंगख के
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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