SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १६६ ] *प्राकत व्याकरण* 'एस' विशेषण रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३१ में की गई है। 'सिरं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या 1-37 में की गई है। 'इणं' रूप की सिद्धि मूत्र संख्या F-२०४ में की गई है। एष: संस्कृत प्रथमा पकवचनान्त मयनाम प है। इसका प्राकृत रूप इणमो भी होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३.८५ से “एर' के स्थान पर 'इणमो की श्रादेश-प्राप्ति कोल्पक रूप से) हो र इणमो रूप सिद्ध हो जाता है । 'ए' रूप का मिद्धि सूत्र-संख्या १-२०९ में की गई है । 'एसा रूप की सिद्धि सूत्र-मख्या १-३३ में की गई है। 'एसी' की सिद्धि मत्र संख्या २.११8 में की गई है। ३.८५ ॥ तदश्च तः सो क्लीचे ॥ ३-८६ ॥ तद एतदश्च तकारस्य सो परे अक्लीचे सो भवति । सो पुरसो । सा महिला। एसी पियो । एसा मुद्धा । सावित्येव । से एए धन्ना । नायो एमाओ महिलाओ । अन्कीच इति किम् । तं एअं वर्ण । ____ अर्थः-संस्कृत मर्वनाम शब्द 'सन् और एतद् के पुलिंदा अश्रय वानिन में प्रथगा बिभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थानीय प्राकृत प्रत्यय पर रहने पर प्राकृत-पास्तर में इन दोनों शादी में ग्थिन पृण व्यञ्जन त' के श्रान पर 'म' को प्रानि हैनी है । बाहरण इस प्रकार है:( सट् +मि = )मः पुरुषःम्सी पुरिमा और ( i) मा महिला मा महिला । (एत +सि = ) एष: नियः = सलो पिया और (एतद् + सि = ) १षा मुग्धामा मुद्धा। इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि 'त' और 'एतद् के प्रथमा विमा कं प्रकवचन में प्राकृत में पुलिंग और स्त्रीलिंग में 'त' के स्थान पर 'म' की श्रादेश-प्रापि हुई है। प्रश्न:-'सि' प्रत्यय परे रहेने पर हो तद' और 'एनट्' के 'त' व्यञ्जन के स्थान पर 'म' की भाभि होती है। ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तरः--'मि' प्रत्यय के अतिरिक्त अन्य प्रत्ययों की प्रानि होने पर 'न' और 'गतद्' में स्थित 'न' व्यञ्जन के स्थान पर 'म' की प्राप्ति नहीं होती है। इसीलिये 'मि' प्रत्यय का उल्ख किया गया है। उदाहरण इस प्रकार हैं: -ले एते धन्याः ते पर धन्ना और ताः एमाः महिला:-ताश्री पाश्री मरिलाओ। इन उदाहरणों से विदिन होता है कि 'न' और 'एसद्' शब्दों में 'सि' प्रत्यय के अतिरिक्त अभ्य प्रत्यय परे रहे हुए हो ना इनमें थित 'त' व्यञ्जन के स्थान पर 'स' व्यञ्जन की श्रादेश-प्राप्ति नहीं होती है। .
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy